24th April 2024

कुशाभाऊ ठाकरे की फटी धोती और आज की भाजपा

कहाँ से कहाँ तक

सुचेन्द्र मिश्रा 

कुशाभाऊ ठाकरे और भाजपा कम से कम मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में तो एक दूसरे के पर्याय हैं। शायद ही कोई भाजपा कार्यकर्ता होगा जो कुशाभाऊ के तप से परिचित नहीं होगा। लंबे समय तक विपक्ष में रहकर पार्टी के लिए संघर्ष करने के बाद जब भाजपा सत्ता में आई तो एक पत्रकार ने कुशाभाऊ से उनके इंटरव्यू के लिए समय लिया। भाजपा के विपक्ष में रहते हुए वह पत्रकार कुशाभाऊ की सादगी को देख चुका था और पार्टी के सत्ता में आ जाने के बाद उसे अपेक्षा थी कि अब कुशाभाऊ की जीवन शैली भी बदल गई होगी।

निर्धारित समय पर वह कुशाभाऊ का इंटरव्यू लेने पहुंचा। उस समय कुशाभाऊ अपने कक्ष के बाहर अपनी धोती सुखा रहे थे और वह धोती फटी हुई थी। धोती को देखते से ही पत्रकार को पता चल गया कि सत्ता में आने के बाद भी कुशाभाऊ नहीं बदले हैं। बिना इंटरव्यू लिए ही वो वापस लौट गया।

यह किस्सा अभी मध्य प्रदेश भाजपा की मांडू में चल रही बैठक में एक बार फिर से सुनाया गया है। क्यों सुनाया गया है यह समझना बहुत कठिन नहीं है। इसी से मिलता जुलता एक किस्सा आज की सत्ता के गलियारों का है।  इसका साक्षी भी एक पत्रकार है।

पहली-पहली बार मंत्री बने एक नेता जी के सरकारी बंगले का दृश्य है। बंगले पर बने कार्यालय में मंत्री के कक्ष के बाहर साफ-सुथरे कपड़े पहने हुए एक संभ्रांत व्यक्ति चुपचाप बैठा हुआ है। उसके आने की जानकारी मंत्री जी को भी है लेकिन वे उसे वहां बैठा छोड़ भोजन करने चले गए हैं। वह व्यक्ति ढाई घंटे तक इसी अवस्था में वहां बैठा रहा और उसे किसी ने चाय पानी के लिए भी नहीं पूछा। पता चला कि वह भारतीय जनता पार्टी का पूर्व विधायक है और मंत्री जी जब पहली बार विधायक बने थे, उसके पहले भी विधायक रह चुका है। 

अब शायद आपकी समझ में आ गया होगा कि मांडू में कुशाभाऊ की फटी धोती को क्यों याद किया गया? 

आज भाजपा के भीतर ही दो भाजपा दिखाई देती हैं जो सत्ता में बैठे हैं, उन्हें मंत्री की इस हरकत में कुछ भी गलत दिखाई नहीं देगा और जो सत्ता से बाहर हैं उन्हें यह हरकत मानवता के मूलभूत सिद्धांतों के प्रतिकूल लगेगी। लेकिन यह समझना इतना सरल नहीं है। हां यह समझने से इंकार कर देना जरूर सरल है। 

यह हर किसी को पता है कि सत्ता अपने साथ बहुत सी बुराइयां लेकर आती है लेकिन इसके बाद भी कुशाभाऊ भाजपा को सत्ता में लाने के लिए दिन रात एक किए रहे। ऐसा करने वाले वे अकेले नहीं थे। ऐसे कईं दधीचि थे जिन्होंने आज की भाजपा बनाने में अपना सब कुछ झोंक दिया और बदले में गैस एजेंसी तक नहीं ली। उन्होंने इसका मलाल भी नहीं रखा क्योंकि मलाई के लिए उन्होंने यह सब किया ही नहीं था। 

पर अब समय नारायण राणे जैसों का है। जिसने सबसे पहले उस बालासाहेब ठाकरे को धोखा दिया जिन्होंने आयकर विभाग के एक मामूली मुलाजिम से उठाकर उसे महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनाया था। उसके बाद उस सोनिया गांधी को ठगा जिनके पैरों में 10 साल तक लोट लगाने के बाद मंत्री पद की मलाई खाई थी। वहां भी जब तक मुख्यमंत्री बनने की उम्मीद रही तब तक भाजपा, मोदी और अमित शाह को नीच, तड़ीपार और भ्रष्ट पता नहीं क्या-क्या कहते रहे। फिर मुंबई के ही एक पुराने भाजपा सांसद ने राणे के खिलाफ ईडी में शिकायत दर्ज कराई। शिकायत दर्ज हो गई।  गिरफ्तारी की तलवार लटक रही थी। यहां यह बताना जरूरी है कि यह मामला संजय राउत के उन 42 लाख रूपयों से कहीं बड़ा था जिसकी जानकारी राउत ने अपने चुनावी शपथ पत्र में भी दे रखी थी। ऐसे में राणे के लिए एक ही रास्ता बचा था कि भाजपाई हो जाएं। सो हो गए और जो मोदी जी और अमित शाह राणे के लिए तड़ीपार और न जाने क्या-क्या थे, उन्हीं के सम्मानित मंत्री भी बन गए। खास बात यह है कि अपनी राजनीति के पहले दिन से एक ही पार्टी में रहकर निष्ठा से काम करने वाले किरीट सोमैया ठगे से देखते रह गए कि वे जिस आदमी को जेल भेजने का बंदोबस्त कर रहे थे, वह उनका भी माननीय हो गया है।

आज की भाजपा पर आरोप है कि वो ईडी, सीबीआई और आयकर जैसे विभागों का उपयोग अपने विपक्षी नेताओं को ठिकाने लगाने में कर रही है। विपक्षी नेता भी यह कहते हैं कि जब उनकी सत्ता आएगी तब वे भी दिखाएंगे। मान लो कि 25- 50 साल बाद जब भी विपक्ष दलों की सत्ता आएगी। उस समय विपक्ष जो दिखाएगा, ये तो तय है कि वह देखने के पहले ही नारायण राणे जैसे लोग चौथी बार पार्टी बदल चुके होंगे। यह देखना तो उन्हें पड़ेगा जिन्हें सत्ता में हिस्सेदारी नहीं मिली। कोई नारायण राणे यह नहीं भुगतेगा भुगतेंगे तो आम कार्यकर्ता ही। क्योंकि वही हैं जो विपक्ष में भी वही झंडा थामे खड़े थे और उस समय भी वही झंडा थामे खड़े होंगे। 

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