21st November 2024

दुनिया में जलसंकट का कारण है मांसाहार… विश्व जल दिवस पर खास

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एक किलो मांस के उत्पादन में उतनी मात्रा में पानी की जरूरत होती है जितने में एक व्यक्ति एक साल तक स्नान करता है

मांसाहार को अपना अधिकार मानने वाले लोगों को पता होगा कि वे मांसाहार के बिना तो जी सकते हैं लेकिन पानी के बिना जीना उनके लिए भी संभव नहीं होगा। आज विश्व जल दिवस है और इस बार के जल दिवस की थीम है पानी का महत्व’ (Valueing Water)।

टाइम्स ऑफ इंडिया में आज स्पीकिंग ट्री स्तंभ में पानी को लेकर एक शोध प्रकाशित हुई है। इसका शीर्षक है  Let’s Do What Is Right, Preserve Water (सही कदम उठाएं, जल संरक्षण करें)। इसकी लेखिका हैं साध्वी भगवती सरस्वती।

इसमें बताया गया है कि हम हमारी दैनिक जरुरतों के किस काम में कितना पानी खर्च करते हैं। इसमें यह जानकारी भी दी गई है कि हमारी दैनिक जरुरतों की वस्तुओं पर कितना पानी खर्च होता है? ये आंकड़ें आपकी आंखें खोल देंगे और यदि आप वाकई पानी के लिए अपनी जिम्मेदारी समझते हैं तो जिन चीजों में ज्यादा पानी खर्च होता है, उनके उपयोग से बचेंगे।

एक किलो मांस में लगता है कितना पानी

देश की पहली महिला आईपीएस अधिकारी किरन बेदी ने इस लेख को ट्वीटर पर शेयर किया है। उन्होंने लिखा है कि

आज जल दिवस है। कृपया, आज का स्पीकिंग ट्री पढ़ें। चलिए यह पैराग्राफ पढ़ें जो कहता है, “एक किलो मांस के उत्पादन में उतनी मात्रा में पानी की जरूरत होती है जितने में एक व्यक्ति एक साल तक स्नान करता है। एक किलो चिकन के उत्पादन में करीब-करीब चार महीनों तक स्नान की मात्रा तक का जल खर्च होता है।

अगर तुलना करें तो एक किलो मांस में पानी की लागत का 1% से भी कम पानी एक किलो गेहूं उगाने में लगता है जिससे रोटियां और अन्य खाद्य वस्तुएं बनती हैं।” उन्होंने अपील की, “जो सही है, वही करें। कृपया जल संरक्षण करें।”

क्या खरीदना है, क्या खाना है, तय करें

हम अपनी जीवनशैली में बदलाव लाकर जल संकट के बढ़ते खतरे को टाल सकते हैं। हम क्या खाते हैं, क्या खरीदते हैं, अगर इनसबका ध्यान रखें तो जीवन में जल की हो रही कमी को पाटा जा सकता है।

संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन में सबसे बड़ा योगदान मांस उद्योग का है। मीट इंडस्ट्री दुनिया में जल संकट का भी बहुत बड़ा कारक है। अगर हम मांस खाएंगे तो हमें पता होना चाहिए कि एक किलो मीट के उत्पादन में एक वर्ष तक नहाने योग्य पानी की खपत होती है।

इसी तरह, अगर हम कुछ खरीदने जाते हैं तो यह ध्यान रखना चाहिए कि हर चीज फैक्ट्री में बनी है। औद्योगिक कचरे जमीन पर या पानी में बहाए जा रहे हैं जो पर्यावरण और जल को दूषित करते हैं। ऐसे में अगर हम निरामिश भोजन करें और जहां तक संभव हो ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा दें तो बड़ी मात्रा में जल का संरक्षण हो सकता है।

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