बंगाल में दर्जनभर भाजपा विधायक जाएंगे दीदी के साथ !
अधिकारी परिवार भी लौट सकता है ममता के पास वापस
कोलकाता
बंगाल चुनाव के बाद ममता बैनर्जी पहले से ज्यादा मजबूत हुईं हैं। माना जा रहा है कि चुनाव परिणाम बंगाल में जमीनी स्तर पर दीदी की पकड़ को और मजबूत करेंगे। यहां तक कि तृणमूल छोड़कर भाजपा का हाथ थामने वाले ज्यादातर नेता हार गए हैं और जो जीते हैं वो भी अब वापस दीदी के पास लौटने की तैयारी कर रहे हैं। बंगाल में चर्चा है कि दर्जनभर से ज्यादा विधायक पाला बदलकर टीएमसी के साथ जा सकते हैं। इनमें चुनाव के पहले टीएमसी से आने वाले नेताओं के अलावा कुछ भाजपा नेता भी शामिल हैं।
भाजपा में अब भी है बाहरी का झगडा
भाजपा बंगाल विधानसभा चुनाव में बाहरी के झगड़े के चलते मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा नहीं कर पाई थी। इसे भी हार की एक वजह माना जा रहा है। पार्टी प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष को मुख्यमंत्री के रूप में पेश करना चाहती थी लेकिन टीएमसी से आए मुकुल रॉय के विरोध के कारण ऐसा नहीं हो पाया। पार्टी में अंदरूनी और बाहरी के बीच की खाई इतनी गहरी है कि चुनाव परिणाम के बाद प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने हार के लिए इन बाहरी लोगों को जिम्मेदार बताया है। इसके बाद पार्टी के भीतर स्थिति और खराब हो गई है।
भविष्य को लेकर चिंतित
टीएमसी से भाजपा में आए नेता अपने राजनीतिक भविष्य के लिए चिंतित हैं। उन्हें लगता है कि चुनाव हो चुके हैं और अब पार्टी में उन्हें हाशिए पर डाल दिया जाएगा क्योंकि प्रदेश नेतृत्व पहले ही उन्हें पसंद नहीं करता है। हार के लिए भी उन्हें जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। ऐसे में वे पार्टी में अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं। इन नेताओं का मानना है कि टीएमसी में वापस जाने पर उनकी वहां भी पहले जैसी स्थिति नहीं होगी लेकिन सत्ता में समायोजन आसान है।
लंबे समय तक ममता के साथ रहने के चलते ये लोग उन्हें अच्छी तरह जानते हैं । इन्हें लगता है कि दीदी अगले चुनाव तक इन्हें राजनीतिक रूप से समाप्त कर देंगी। चुनाव के बाद से ही ममता के पुराने साथी मुकुल रॉय चुप हैं। बताया जा रहा है कि रॉय अपनी वापसी का रास्त खुला रखना चाहते हैं। अबकी बार ये लोग अपने साथ कुछ भाजपाईयों को भी टीएमसी में ले जाने की तैयारी कर रहे हैं।
अधिकारी परिवार की चिंता
शुभेन्दु अधिकारी ने नंदीग्राम से ममता बैनर्जी को हरा दिया है लेकिन वे भी भविष्य को लेकर चिंतित हैं। उनके पिता व भाई क्षेत्र से सांसद हैं तथा पिता तो मनमोहन सिंह की सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं। अधिकारी परिवार जानता है कि ममता के पास उन्हें राजनीतिक रूप से खत्म करने के लिए पांच साल की सरकार है। कहा जा रहा है कि अधिकारी ममता से अपने रिश्ते सुधारने के लिए उनके लिए नंदीग्राम सीट भी खाली कर सकते हैं।
ये टीएमसी वाले भाजपा में आकर हारे
टीएमसी से भाजपा में आने वाले नेताओं में चुनाव जीतने वाले नाम गिने चुने हैं लेकिन हारने वालों की संख्या ज्यादा हैं। इनमें ममता सरकार के सिंचाई मंत्री रंजीब बैनर्जी हैं, जिनके भाजपा में शामिल होने को बहुत बड़ी घटना माना गया था। बैनर्जी अपने गढ़ में टीएमसी के नए प्रत्याशी कल्याण घोष से 42 हजार से ज्यादा मतों से हारे हैं। इस सूची में अगला नाम बीसीसीआई और आईसीसी के अध्यक्ष रहे जगमोहन डालमिया के बेटी वैशाली डालमिया भी हैं वे
इससे पता चलता है कि इनकी क्षेत्र में भी वे बल्ली सीट से बुरी तरह हारी हैं। इसके अलावा हावड़ा के पूर्व मेयर रतीन चक्रवर्ती शिवपुर में टीएमसी प्रत्याशी और क्रिकेटर मनोज तिवारी से हार गए हैं। भाजपा में जाने वाले विधाननगर के पूर्व महापौर सव्यसाची दत्ता भी हारे हैं। इसके अलावा सिंगुर आदोलने के समय से ममता के साथी रहे रबीन्द्र नाथ भट्टाचार्य जो कि टीएमसी चार बार के विधायक थे, बीजेपी में जाकर अपनी सीट गंवा बैठे। भट्टाचार्य ने खुलेआम अपनी गलती मानी है और कहा है कि मेरा पार्टी बदलना लोगों को पसंद नहीं आया।
इस सूची में प्रबीर घोषाल, तन्मय घोष, सबाधिपति गौर, गौतम रॉय, जितेन्द्र कुमार तिवारी, सैकत पांजा, विश्वजीत कुंडू, मुकुल रॉय के बेटे शुभ्राषु रॉय, सुनील सिंह और शीलभद्र दत्ता भी चुनाव हार गए हैं। ये लोग टीएमसी छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे।