भाजपा ने जिसके घोटाले पर जारी की थी किताब उसे ही बनाया असम का मुख्यमंत्री
लुईस बर्गर मामले में हाई कोर्ट ने दिए थे सीबीआई जांच के आदेश
गुवाहाटी
चुनाव परिणाम आने के बाद एक सप्ताह तक चले गतिरोध के बाद अंतत: भारतीय जनता पार्टी ने असम के मुख्यमंत्री के मुद्दे को सुलझा लिया है। पार्टी 2015 में कांग्रेस से भाजपा में आए हिमंत बिस्व सर्मा को प्रदेश का नया मुख्यमंत्री घोषित किया है। वे भाजपा के ही असम गण परिषद से आए सर्वानंद सोनोवाल का स्थान लेंगे। रविवार को गुवाहाटी में हुई विधायकों की बैठक में निर्वतमान मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल ने हिमंत बिस्व सर्मा के नाम का प्रस्ताव रखा, जिसे निर्विरोध स्वीकार कर लिया गया।
देखने में सबकुछ बहुत आसानी से निपट गया। यहां तक कि बैठक स्थल तक सोनोवाल और सर्मा एक ही वाहन में आए थे, लेकिन मामला उतना आसान नहीं है क्योंकि सर्मा की नियुक्ति पर भाजपा को कईं सवालों के जवाब देने होंगे । यहां तक कि भ्रष्टाचार पर प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी की कथित जीरो टालरेंस पॉलिसी पर भी सवाल खड़े हो जाएंगे।
जुलाई 2015 भाजपा ने कांग्रेस सरकार के भ्रष्टाचार पर ‘Saga of Scams in Congress-ruled States’ नामक 64 पेज की बुकलेट जारी की थी। इसमें हिमंत बिस्व सर्मा का भी नाम था और उनके खाते लुईस बर्गर (Louis Berger) स्कैम बताया गया था। लेकिन खास बात ये है कि जुलाई में ये बुकलेट जारी हुई और अगस्त में सर्मा भाजपा में शामिल होकर सारे आरोपों से “बरी” हो गए।
क्या है लुईस बर्गर स्कैम
ये मामला 2010 का है, उस समय कांग्रेस के तरुण गोगोई मुख्यमंत्री थे और हिमंत बिस्व सर्मा उनकी सरकार में कैबिनेट मंत्री थे। गुवाहाटी में जल वितरण योजना का काम चल रहा था। भाजपा की बुकलेट के अनुसार इस काम के लिए एक अमेरिकन एजेंसी लुईस बर्गर को 200 करोड़ रुपए का भुगतान किया गया था। इस भुगतान में से कंपनी ने कईं नेताओं और अधिकारियों को रिश्वत दी थी। भाजपा की बुकलेट के अनुसार उस समय सर्मा सरकार में प्रभावशाली मंत्री थे और ये विभाग उन्हीं के अधीन था। ऐसे में इस मामले सर्मा प्रमुख संदिग्ध हैं।
ऐसे आया था मामला सांमने
अमेरिकी निर्माण प्रबंधन कंपनी लुइस बर्गर इंटरनेशनल ने अमेरिका के कोर्ट में कांट्रैक्ट पाने के लिए भारत सहित विदेशों में रिश्वत देने की बात मानी थी। मामला निपटाने के लिए कोर्ट में कंपनी ने 1.71 करोड़ डॉलर का आपराधिक जुर्माना देना भी स्वीकार कर लिया था। इस मामले में अभियोजन अधिकारियों के अनुसार कंपनी के प्रतिनिधियों ने भारत, इंडोनेशिया, वियतनाम और कुवैत में ठेका हासिल करने के लिए 1998 से 2010 के बीच 39 लाख डॉलर की रिश्वत देने की बात मानी थी।
अमेरिकी कानून विभाग के अनुसार अवैध भुगतानों को कमिटमेंट फीस, काउंटरपार्ट पर डिम्स और थर्ड पार्टी पेमेंट कहकर छुपाया गया था। अदालती दस्तावेजों में कंपनी वे नाम नहीं बताएं हैं जिन्हें ये रिश्वत दी गई थी। इसके बाद असम के तत्कालीन मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने इस मामले में जांच के आदेश दिए थे।
कानून अपना काम करेगा
सर्मा भाजपा द्वारा उनके भ्रष्टाचार का हवाला देने वाली बुकलेट के जारी होने के एक महीने बाद ही भाजपा में शामिल हो गए थे। इस बारे में भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से पूछा गया था तो उन्होंने जांच जारी रहेगी और कानून अपना काम करेगा जैसी बात करके मामला ठंडा कर दिया था। तब ये मामला ठंडा ही है। लेकिन सर्मा के मुख्यमंत्री बनने के बाद ये फिर गरम हो सकता है।
शिवराज पर कांग्रेस के आरोपों के जवाब में थी बुक लेट
कांग्रेस पार्टी ने मध्य प्रदेश और राजस्थान की भाजपा सरकारों के भ्रष्टाचार के खिलाफ एक बुकलेट जारी की थी। इसमें मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर तथा राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे पर आरोप लगाए गए थे। शिवराज सिंह चौहान पर व्यापमं और डंपर कांड जैसे आरोप लगाए गए थे। व्यापमं घोटाले को कांग्रेस पूरे देश में भुनाने की तैयारी कर रही थी। इसके बाद भाजपा ने आजादी के बाद से कांग्रेस कीअलग-अलग सरकारों द्वारा किए गए सारे घोटालों की बुकलेट ‘Saga of Scams in Congress-ruled States’ जारी की थी।
मोदी-शाह के कारण नहीं की सीबीआई ने पूछताछ
असम के आरटीआई एक्टिविस्ट भाबेन हांडिक ने इस मामले में गुवाहाटी उच्च न्यायालय में जनहित याचिका लगाई थी। इसमें उन्होंने सर्मा के खिलाफ सीबीआई जांच की मांग की थी। कोर्ट ने 2017 में इसके आदेश दिए थे लेकिन इसके एक साल बाद भी सीबीआई ने सर्मा से पूछताछ नहीं की। इस मामले में हांडिक का कहना है कि जब सीबीआई इस मामले में जिन अधिकारियों के नाम आए हैं, उन सब से पूछताछ कर चुकी है तो सर्मा से अब तक पूछताछ क्यों नहीं की गई है?
हांडिक असोम स्वराज नाम के एनजीओ के अध्यक्ष हैं। उन्होंने आरोप लगाया है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के दबाव के चलते सीबीआई राजनीतिक दबाव में सर्मा से पूछताछ नहीं कर रही है। कहा जाता है कि जब सर्मा तरुण गोगोई की सरकार में शिक्षा मंत्री थे उस समय अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने भी उनके खिलाफ आंदोलन चलाया था। इसमें सर्मा पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए थे। हालांकि इस मामले में हमे कोई प्रमाण नहीं मिला है।
खैर सर्मा अब मुख्यमंत्री बन गए हैं और अब लुईस बर्गर को चीज बर्गर समझ लिया जाना चाहिए।