पिछ़ड़ों के अगड़े : केवल 10 जातियां ले रहीं ओबीसी आरक्षण की 25 प्रतिशत नौकरियां
25 प्रतिशत जातियों को पास 97 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण, ओबीसी की 983 जातियों को आज तक नहीं मिला आरक्षण का लाभ
नई दिल्ली।
पिछड़ा वर्ग आरक्षण के नाम पर पिछले चार साल से मध्य प्रदेश सहित देश के अनेक राज्यों में सरकारी नौकरी की तैयारी में लगे युवा परेशान हैं। सरकारें राजनीतिक कारणों से इस आरक्षण को बढ़ाना चाहती हैं इसके चलते हाल ये हो गए हैं कि मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग इसके चलते राज्य सेवा परीक्षा में 2018 से कोई भर्ती नहीं कर पाया है। लेकिन हाल में खुलासा हुआ है कि पिछड़ा वर्ग में भी अगड़े पैदा हो गए हैं। रोहिणी आयोग (Rohini Commission) के रिपोर्ट के अनुसार केवल 10 ओबीसी जातियां लगभग 25 फीसदी आरक्षण का लाभ ले रहीं हैं। प्रतिशत में आंकड़ा निकालिएगा तो पता चलेगा कि 25 प्रतिशत OBC जातियां 97 प्रतिशत पिछड़ों के अधिकारों का उपयोग कर रह हैं। 2633 में 983 यानी 37 प्रतिशत पिछड़ी जातियों को आज तक आरक्षण का कोई लाभ ही नहीं मिला।
क्या होगा जब 983 जातियां पिछ़ड़ों के अगड़ों से अधिकार मांगेगी
दरअसल, बिहार/यूपी में मोदी समर्थक हिन्दू वोटों को बांटने के लिए रामचरितमानस पर हमले की राजनीति शुरू हुई है। ये सब कुछ हिन्दू वोटबैंक में सेंधमारी के लिए किया जा रहा है। जातीय पहचान की राजनीति करने वाली लालू और अखिलेश यादव की पार्टी जमकर जातीय जहर फैलाने में जुटी है। ताकि हिन्दू वोटों का ध्रुवीकरण को रोका जा सके। लेकिन बड़ा प्रश्न ये है कि जब वे जातियां जो कि पिछड़े वर्ग में आती है लेकिन उन्हें इसका अब तक कोई लाभ नहीं मिला है, जब वो अपना अधिकार मांगेगे तो यादव, राजभर, मौर्य जैसे नेता क्या करेंगे? आजकल 10% Vs 90% का नारा गूंज रहा है। प्रयास किया जा रहा है कि बैकवर्ड-फॉरवर्ड जातियों के बीच जहर घोलकर कास्ट के नाम पर ध्रुवीकरण किया जाए।
ओबीसी की राजनीति करने वालों को रोहिणी आयोग की वास्तविकता पता होगी लेकिन आम लोगों को इससे वास्ता बहुत कम है। इसी का फायदा ‘बैकवर्ड में फॉरवर्ड’ राजनेता वोटबैंक को साधने में कर रहे हैं। जिस दिन वो 983 जातियां (जिन्हें अब तक आरक्षण का लाभ नहीं मिला) अपनी हक के लिए खड़ी हो जाएंगी तो उन 10 जातियों की परेशानी बढ़ जाएगी। कथित पिछड़ी जाति के नाम पर मलाई खानेवाले गले को सहलाने लगेंगे।
क्या है रोहिणी आयोग ?
रोहिणी आयोग के जिम्मे यह काम सौंपा गया है कि ओबीसी में आने वाली जिन जातियों को अब तक इसका लाभ नहीं मिला है उन्हें इसका लाभ किस तरह से दिया जाए। इस आयोग को केन्द्रीय सूची में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के भीतर उप-वर्गीकरण के मुद्दे तथा आरक्षण की जांच के लिए 2 अक्टूबर 2017 को रोहिणी आयोग का गठन किया गया था। आयोग की की अध्यक्ष न्यायमूर्ति जी. रोहिणी ओबीसी समुदाय से आती हैं।चार सदस्यीय आयोग की अध्यक्ष न्यायमूर्ति जी. रोहिणी (मुख्य न्यायाधीश, सेवानिवृत्त, दिल्ली उच्च न्यायालय) हैं। इसके अन्य तीन सदस्य डॉ जेके बजाज, निदेशक, सेंटर फॉर पॉलिसी स्टडीज, नई दिल्ली, , भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण, कोलकाता के निदेशक जो कि इसके पदेन सदस्य हैं तथा रजिस्ट्रार जनरल और जनगणना आयुक्त, भारत (पदेन सदस्य) हैं।
ओबीसी जातियों में आरक्षण के असमान वितरण पर रिपोर्ट तैयार करना है। रोहिणी आयोग की जिम्मेदारी है कि अन्य पिछड़ा वर्ग के भीतर उप-वर्गीकरण के लिए साइंटिफिक लिहाज से पैरामीटर तैयार करे। ताकि आरक्षण का फायदा सभी जातियों को मिले। इसमें अन्य पिछड़े वर्गों की केंद्रीय सूची से संबंधित वर्गों, समुदायों, उप-जातियों की पहचान करने और उन्हें संबंधित उप-श्रेणियों में कैटेगराइज करना है। –
ओबीसी आरक्षण को अलग-अलग श्रेणियों में बांटने का प्रस्ताव
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (National Backward Classes Commission) ने ओबीसी कोटा को आबादी के हिसाब से चार कैटेगरी में बांटने का प्रस्ताव दिया है। ताकि जिन जातियों को रिजर्वेशन का लाभ नहीं मिला है, उन्हें भी लाभ मिल सके। इसी के लिए रोहिणी आयोग का गठन किया गया। जिसके तहत अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 27% कोटा के डिविजन के लिए चार कैटेगरी का फॉर्मूला प्रस्तावित किया है। खास बात ये कि 983 जातियों को आज तक आरक्षण का कोई लाभ ही नहीं मिला। ओबीसी कोटा आरक्षण को विभाजित करने के लिए केंद्रीय सूची में 2633 ओबीसी जातियों को चार उप-श्रेणियों (1,2,3 और 4) में विभाजित करने का प्रस्ताव दिया है।
- कैटेगरी 1: 2% आरक्षण प्राप्त करने वाले सबसे वंचित समूह में 1674 जातियां शामिल हैं।
- कैटेगरी 2: 6% कोटा आरक्षण के साथ 534 जातियों का ग्रुप है।
- कैटेगरी 3: 9% रिजर्वेशन में 328 जाति समूह शामिल हैं।
- कैटेगरी 4: 10% आरक्षण के साथ 97 जाति समूह शामिल हैं।
अब तक क्या मिला रोहिणी आयोग को
2018 में रोहिणी आयोग ने ओबीसी कोटा के तहत केंद्र सरकार की एक लाख 30 हजार नौकरियों और केंद्र सरकार के संस्थानों (IIT IIM, AIIMS जैसे संस्थान) में एडमिशन के आंकड़ों का विश्लेषण किया। जिसके आंकड़े चौंकानेवाले रहे।
- केंद्रीय स्तर पर 97% नौकरियां और दाखिले में ओबीसी के तहत 25% उप-जातियां काबिज हैं।
- इनमें से 24.95% सीटों पर सिर्फ 10 ओबीसी जातियों ने कब्जा किया है। (हालांकि उन 10 जातियों का नाम उजागर नहीं किया गया)
- 37% ओबीसी जाति यानी 983 जातियों (कुल 37%) का नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण का लाभ नहीं मिला।
- देश की 994 उप-जातियों का सरकारी नौकरी और शिक्षण संस्थानों में एडमिशन का प्रतिनिधित्व केवल 2.68% है।
जुलाई में आएगी रोहिणी आयोग की रिपोर्ट
केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने 2 अक्टूबर 2017 को गठित रोहिणी आयोग के कार्यकाल को 14वां विस्तार दिया है। कहा जा रहा है कि ये आयोग अपनी रिपोर्ट जनवरी 2023 के अंत में केंद्र सरकार को सौंपने के लिए तैयार था, मगर छह महीने (31 जुलाई 2023) का नया विस्तार दिया गया। द हिंदू अखबार से बातचीत में रोहिणी आयोग के एक सदस्य ने बताया कि ‘पैनल के पास करने के लिए कुछ भी नहीं बचा है। अब हम केवल आवश्यकतानुसार अटैचमेंट कर रहे हैं और रिपोर्ट को कम्पाइलेशन को अंतिम रूप दे रहे हैं।’
राष्ट्रपति के यहां से 25 जनवरी को जारी अधिसूचना में कहा गया है कि 31 जुलाई 2023 तक आयोग अपनी रिपोर्ट पेश करेगा। हालांकि पैनल के सदस्य ने कहा कि वे नई समय सीमा से पहले ही इसे पूरा कर सकते हैं। जाहिर-सी बात है अगर OBC आरक्षण में ‘बैकवर्ड में फॉरवर्ड’ उन 10 जातियों के बारे में डिटेल रिपोर्ट दिया तो कई पिछड़ी दबंग जातियों के कथित तारणहार छाती पीटने लगेंगे।
कई दलों की राजनीति हो जाएगी चौपट
ओबीसी आरक्षण आज की राजनीति का सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा है। माना जा रहा है कि ओबीसी आरक्षण की राजनीति करने वाले दल जैसे समाजवादी पार्टी, जेडी यू, राजद, डीएमके से लेकर तो राजभर, मौर्य जैसे नेता इस रिपोर्ट के बाद गफलत में होंगे। माना जा रहा है कि इस रिपोर्ट से इन दलों के राजनैतिक अस्तित्व भी दाव पर लग सकते हैंष
2023 में देश के कुल 9 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। इनमें मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, तेलंगाना, त्रिपुरा, मेघालय, नागालैंड और मिजोरम शामिल है। माना जा रहा है कि इससे 2024 लोकसभा चुनाव को लेकर जनता के मूड का पता चलेगा। ऐसे में पहले से ही 90 और 10 को लेकर हाय-तौबा मचाया जा रहा है। ताकि हिन्दू वोटों के ध्रुवीकरण का काट खोजा जा सके। केंद्र सरकार के लिए भी रोहिणी आयोग की रिपोर्ट गले की फांस बन सकती है। ऐसे में इसे लागू करने या सार्वजनिक करने को लेकर मोदी सरकार सावधानियां बरतेगी। चुनाव की तराजू पर आयोग की रिपोर्ट को तौला जाएगा, इसमें कोई दो मत नहीं है।