19th April 2024

सनद होने से ही वकील नहीं कहलाएंगे वकील कहलाने के लिए वकालत जरूरी

गुजरात उच्च न्यायालय का निर्णय

अहमदाबाद

सनद लेकर स्वयं को वकील मानने वालों के लिए एक बुरी खबर है। गुजरात हाईकोर्ट ने एक मामले में सुनवाई करते हुए कहा है कि केवल सनद ले लेने से कोई वकील नहीं हो जाता वकील होने के लिए वकालत करना जरूरी है। कोर्ट की यह बात उन लोगों के लिए जोर का झटका है जोकि कानून की पढ़ाई करने के बाद सनद तो ले लेते हैं लेकिन वकालत नहीं करते। यह लोग बार एसोसिएशन के सदस्य भी बन जाते हैं।  

गुजरात उच्च न्यायालय में चल रहे सुनवाई के दौरान जज बिरेन वैष्णव ने कहा कि “एडवोकेट” शब्द की व्याख्या एक ऐसे व्यक्ति के रूप में की गई है, जहां बार काउंसिल में नामांकन मात्र से याचिकाकर्ता अपेक्षित योग्यता का दावा करने का हकदार नहीं हो जाता है, जैसा कि दीपक अग्रवाल (सुप्रा) के रूप में वास्तव में दलील देने और पेश होने के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा व्याख्या की गई है।”

यह टिप्पणी दो याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान की गई जिसमें सामान्य राज्य सेवा में संयुक्त चैरिटी आयुक्त के पद के इच्छुक याचिकाकर्ताओं को भर्ती नियमों के अनुसार एडवोकेट के रूप में अपेक्षित अनुभव की कमी के कारण अपात्र घोषित किया गया था। इस पद के लिए एडवोकेट के रूप में न्यूनतम 10 वर्ष की योग्यता अपेक्षित थी। 

इस मामले में याचिकाकर्ता का कहना था कि गुजरात लोक सेवा आयोग ने अधिवक्ता अधिनियम 1961 के तहत 10 वर्ष के नामांकन की शर्त रखी थी। एक बार बार में नामांकन हो जाने के बाद वह समाप्त नहीं होता बल्कि जब नामांकित वकील दूसरा काम करने लगता है तो नामांकन निलंबित हो जाता है जो कि वकालत प्रारंभ करने पर पुनः एक्टिव हो जाता है इस संबंध में याचिकाकर्ता की ओर से और श्रीकांत और अन्य बनाम केरल लोक सेवा आयोग के मामले का हवाला दिया गया था। 

इसके उत्तर में गुजरात लोक सेवा आयोग के वकील ने  दीपक अग्रवाल बनाम केशव कौशिक और अन्य के मामले का हवाला देते हुए कहा कि एडवोकेट का अर्थ अनिवार्य रूप से एक ऐसा व्यक्ति है जो न्यायालय के समक्ष प्रैक्टिस कर रहा है यदि न्यायालय के अलावा कहीं और कार्यरत है तो वह केवल एक कर्मचारी बन कर रह जाता है। तब वह एडवोकेट नहीं रहता। 

न्यायाधीश बिरेन वैष्णव ने आदेश में कहा कि “जहां तक उनके प्रैक्टिस करने के अधिकार पर विचार किया जाता है, बार काउंसिल की सूची में उनके नाम का बने रहना कोई मायने नहीं रखता है और ऐसा व्यक्ति खुद को एक वकील के रूप में नामित नहीं कर सकता है।”

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