फाइनल सेमेस्टर की परीक्षा पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी, जल्द पता चलेगा परीक्षा होगी या नहीं
नई दिल्ली.
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के स्नातक और स्नातकोत्तर के फाइनल सेमेस्टर की परीक्षा कराने के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका पर सुनवाई पूरी हो चुकी है। कोर्ट ने यूजीसी को लिखित बहस देने को कहा है। इसके लिए शुक्रवार का दिन तय किया गया था। अब इसके बाद य न्यायालय इस मामले में निर्णय सुनाएगा। इसके बाद तय होगा कि अंतिम सेमेस्टर की परीक्षा होगी या नहीं तथा यदि होगी तो किस तरह से।
मामले की सुनवाई न्यायाधीश अशोक भूषण, आर सुभाष रेड्डी और एमआर शाह की पीठ कर रही है। पीठ ने 18 अगस्त को मामले पर सुनवाई की और लिखित दलीले पेश करने के लिए तीन दिन का समय और दिया है। यह समय भी शुक्रवार को समाप्त हो गया है। अब सोमवार को इस मामले में निर्णय आ सकता है।
फाइनल ईयर के स्टूडेंट्स की हेल्थ भी महत्वपूर्ण
याचिकाकर्ताओं की ओर से वकील श्याम दीवान ने शीर्ष अदालत से कहा था कि फाइनल ईयर के स्टूडेंट्स की हेल्थ भी उतनी ही अहमियत रखती है जितनी अन्य बैच के स्टूडेंट्स की रखती है। सीनियर एडवोकेट श्याम दीवान ने कहा था कि इन दिनों स्टूडेंट्स को ट्रांसपोर्टेशन व कम्युनिकेशन से जुड़ी काफी दिक्कतें आ रही हैं। महाराष्ट्र के कई कॉलेज क्वारंटाइन केंद्र के तौर पर इस्तेमाल किए जा रहे हैं।
इससे पहले गुरुवार को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) से अपने हलफनामे में उच्चतम न्यायालय से कहा था कि विद्यार्थी के अकादमिक करियर में अंतिम परीक्षा महत्वपूर्ण होता है और राज्य सरकार यह नहीं कह सकती कि कोविड-19 महामारी के मद्देनजर 30 सितंबर तक अंत तक विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों से परीक्षा कराने को कहने वाले उसके छह जुलाई के निर्देश बाध्यकारी नहीं है।
राज्य सरकारें नहीं कर सकती परीक्षा रद्द
कोर्ट ने भी कहा है कि यूजीसी के गाइडलाइन्स को उपदेश केे तौर पर न लिया जाए। यूजीसी ने कहा कि छह जुलाई को उसके द्वारा जारी दिशा-निर्देश विशेषज्ञों की सिफारिश पर अधारित हैं और उचित विचार-विमर्श कर यह निर्णय लिया गया। आयोग ने कहा कि यह दावा गलत है कि दिशा-निर्देशों के अनुसार अंतिम परीक्षा कराना संभव नहीं है।
इतना ही नहीं यूजीसी ने महाराष्ट्र और दिल्ली सरकार द्वारा अंतिम सेमेस्टर की परीक्षाओं को रद्द करने को गलत बताया है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने 10 अगस्त को शीर्ष अदालत से कहा था कि राज्य सरकारें आयोग के नियमों को नहीं बदल सकती हैं, क्योंकि यूजीसी ही डिग्री देने के नियम तय करने के लिए अधिकृत है। मेहता ने न्यायालय को बताया कि करीब 800 विश्वविद्यालयों में 290 में परीक्षाएं संपन्न हो चुकी है जबकि 390 परीक्षा कराने की प्रक्रिया में हैं।
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