14th September 2024

हॉकी के उस रॉकस्टार का राख हो जाना

140 करोड़ जनसंख्या वाला देश ओलंपिक में पदक क्यों नहीं जीत पता, इस सवाल का जवाब यहां है

ओलंपिक हॉकी में भारत ने ऑस्ट्रेलिया को 52 साल बाद हराया। इसी खुशी में मैं थोड़ा नॉस्टैल्जिक हो गया और मैंने गूगल पर राजीव मिश्रा को सर्च किया। सर्च का रिजल्ट चौंकाने वाला था। पहली ही लिंक में लिखा था कि राजीव मिश्रा वाराणसी के सरसौली के पास स्थित अपने घर में मृत पाए गए थे और यह घटना एक साल पहले यानी कि जून 2023 की थी। उनकी मौत का पता तब चला जब उनके घर से बदबू आने लगी यानी कि राजीव की मौत का पता जिस दिन चला उसके कई दिन पहले वे मर चुके थे।

यहां यह सवाल स्वाभाविक रूप से उठता है कि राजीव मिश्रा का ओलंपिक हॉकी से क्या लेना देना? यह जानने के लिए आपको 1997 की विश्व जूनियर हॉकी प्रतियोगिता तक जाना होगा। यह भारतीय हॉकी का संकटकाल था और भारत हॉकी के अपने पुराने गौरव से बहुत दूर हो चुका था। ऐसे में इस विश्व कप में भारत उपविजेता बना था। प्रतियोगिता में छह गोल करने वाले राजीव मिश्रा को प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट चुना गया था। ड के भीतर मिश्रा की गति और स्किल चौंकाने वाली थीं। उस समय यह माना गया था कि भारतीय हॉकी को उसका तेंदुलकर मिल गया है।

Rajiv Mishra

घुंघराले बाल और ऊपर से हेडबैंड बांधे हुए मिश्रा किसी रॉकस्टार से काम नहीं लगते थे। उन्हें 1998 के सीनियर विश्व कप के लिए टीम में शामिल कर लिया गया। टीम का शिविर पटियाला में चल रहा था और उस समय तक भारतीय हॉकी टीम में विदेशी कोच का पदार्पण हो चुका था। नीदरलैंड के रोलेंट ओल्टमंस भारतीय हॉकी टीम के कोच थे। मिश्रा के बारे में ओल्टमंस का मानना था कि उन्होंने D के भीतर मिश्रा से तेज तर्रार फॉरवर्ड नहीं देखा।

D के भीतर मिश्रा के मूवमेंट और स्किल को मॉनिटर करने के लिए ओल्टमंस ने तीन वीडियो कैमरे लगाए थे। उनका मानना था कि एक वीडियो कैमरा मिश्रा की स्किल को रिकॉर्ड करने में सक्षम नहीं है। D के भीतर ही प्रैक्टिस के दौरान राजीव मिश्रा भारतीय टीम के गोलकीपर ए बी सुबैया से टकरा गए। गोलकीपर पूरे गीयर यानी पेड्स, गार्ड और हेलमेट पहने हुए थे। इसके चलते उन्हें चोट नहीं लगी लेकिन मिश्रा का घुटना बुरी तरह से चोटिल हो गया।

उस समय भारत में स्पोर्ट्स इंजरी को लेकर उतनी सुविधा नहीं थी। इलाज के खर्च को लेकर मिश्रा का हॉकी फेडरेशन के साथ विवाद भी हुआ। उस समय बीसीसीआई जैसे अमीर खेल संगठन अपने इंजर्ड खिलाड़ियों के इलाज के लिए विदेश भेज दिया करते थे लेकिन हॉकी संगठन के पास उतना पैसा नहीं था कि वह ऐसा कर पाता। हॉकी संगठन ने जो मार्गदर्शन मिश्रा को देना था वह भी नहीं दिया या उसके लिए भी कोई व्यवस्था नहीं की। मिश्रा के कोच ने आरोप लगाया कि फेडरेशन ने मिश्रा की कोई मदद नहीं की। इसके अभाव में मिश्रा अपना रिहैबिलिटेशन पूरा होने के पहले ही मैदान में उतर गए और थोड़ी ही देर में लंगड़ाने लगे। इसी के साथ 21 साल की उम्र में उनका हॉकी करियर खत्म हो गया।

इस बीच स्पोर्ट्स कोटा में रेलवे में नौकरी पा गए थे और मुख्य टिकट निरीक्षक बन गए थे। रेलवे द्वारा निर्धारित नाम पट्टी को वह अपने कोट पर नहीं लगाते थे क्योंकि वे चाहते थे कि उन्हें कोई ना पहचाने और उन्हें डर था कि उनका नाम पढ़कर लोगों उन्हें पहचान जाएंगे। निराशा में राजीव शराब में डूब गए। वे शराब पीते-पीते सो जाया करते थे। ऐसे में उनकी मां ने उनकी कुछ मदद की और वह एक बार फिर हॉकी के मैदान पर लौटे लेकिन रेलवे के लिए कुछ प्रतियोगिताओं में खेलने से आगे नहीं बढ़ सके।

यादें शेष

इसके बाद मिश्रा खबरों में तभी आए जब वाराणसी के सरसौली इलाके में उनके घर में उनका शव मिला। राजीव मिश्रा दरअसल उस सवाल का जवाब है जो कि हर ओलंपिक के बाद भारतीय उठाते हैं कि 140 करोड़ की जनसंख्या वाला देश मेडल क्यों नहीं जीत पाता? राजीव मिश्रा की जिंदगी उनके इस सवाल का जवाब है बहुत सारे राजीव समय पर सही मदद और मार्गदर्शन न मिलने के चलते अंत में खो जाते हैं। दिक्कत यह है कि खेल संघ में उन लोगों को बैठा दिया गया है जिन्होंने स्वयं कभी एक खिलाड़ी के रूप में उत्कृष्ट का संघर्ष कभी किया ही नहीं इसलिए वह संभावित खिलाड़ी और उसके संभावित संघर्ष का अनुमान कभी लगा ही नहीं पाते।

फिलहाल चलते ओलंपिक के बीच में एक पर्चा बहुत वायरल हो रहा है यह पर्चा खेलो इंडिया के बजट को लेकर है इसमें बताया गया है कि ओलंपिक में केवल 8 खिलाड़ी भेजने वाले गुजरात और उत्तर प्रदेश को खेलो इंडिया के तहत 464 करोड़ रूपया मिले हैं जबकि साथ खिलाड़ी भेजने वाला झारखंड केवल 8 करोड़ रूपया पाया है। हाल यह है कि देश को सबसे ज्यादा ओलंपियन देने वाले पंजाब और हरियाणा इस सूची में गुजरात और यूपी से नीचे है।

यहां तक कि उत्तर पूर्व का राज्य मणिपुर जिसकी पहचान भारत को ओलंपिक मेडल दिलाने वाले राज्य की है उसे एक भी ओलंपियन ना देने वाले अरुणाचल प्रदेश की तुलना में खेलो इंडिया में केवल पांचवा हिस्सा मिला है। इस तरह के बंटवारे ने कितने राज्यों मिश्रा पैदा किए होंगे इसका आप सहज ही अनुमान लगा सकते हैं। मिश्रा की मौत अपनी जगह है लेकिन क्या उनकी प्रतिभा की हत्या की जिम्मेदारी तय नहीं होनी चाहिए?

error: Content is protected !!