कूनो में चीते लाने वाले को ही किया चीता टास्क फोर्स से बाहर
झाला ने ही किया था चीता रखने के लिए कूनो नेशनल पार्क का चयन
Goonj
नामीबिया से आए हुए चीते चर्चा में है लेकिन इसके साथ ही अब एक चर्चा और शुरू हो गई है। केंद्र सरकार ने चीता टास्क फोर्स का गठन किया है। इस टास्क फोर्स की खास बात यह है कि इसमें नामीबिया से चीता लेकर आने वाले वाइल्ड लाइफ इंस्टिट्यूटऑफ इंडिया के डीन और जाने-माने बायोलॉजिस्ट यादवेंद्र देव विक्रम सिंह झाला को शामिल नहीं किया गया है। झाला 2009 से ही भारत के चीता प्रोजेक्ट के प्रमुख रहे हैं। 16 सितंबर को नामीबिया से भारत आने वाले चीतों को लेकर भी झाला ही आए थे। जब कूनो नेशनल पार्क में इन चीतों को क्वारंटाइन किया गया था तो इसकी व्यवस्था भी झाला नहीं देखी थी। झाला ने ही चीतों को रखने के लिए कूनो नेशनल पार्क का चयन किया था।
बताया जाता है कि झाला ने ही तकनीकी अध्ययन कर नामीबिया से चीते लाकर भारत में बसाने की तैयारी की थी। 2010 में जब भारत में चीता टास्क फोर्स बनाया गया था तब उसके मुखिया एम वी रंजीत सिंह नियुक्त किए गए थे इस टास्क फोर्स के टेक्निकल डायरेक्टर झाला ही थे। तभी से झाला यह काम देख रहे हैं।
कूनो का चुनाव भी झाला ने ही किया था
2009 में जब जयराम रमेश वन एवं पर्यावरण मंत्री थे उस समय झाला ने ही चीजों को रखे जाने के लिए उपयुक्त स्थान का चुनाव किया था। कुल मिलाकर चीतों को मध्यप्रदेश में लाने के मामले में झाला की महत्वपूर्ण भूमिका है।
चीजों को भारत लाने के मामले में नामीबिया के बारे लॉजिस्ट से बात करने वाली टीम के भी मुखिया झाला ही थे।
20 सितंबर को नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी ने चीतों के लिए 9 सदस्य टास्क फोर्स का गठन किया है। इस टास्क फोर्स में झाला का नाम नहीं है। प्रोजेक्ट चीता के डायरेक्टर रहे रंजीत सिंह से जब इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि इस टास्क फोर्स के सदस्यों के बारे में उनसे कोई बात नहीं की गई है। वहीं नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी के सचिव एसपी यादव से जब झाला को टास्क फोर्स में न शामिल किए जाने के बारे में बात की गई तो उन्होंने इस बारे में कुछ भी कहने से इनकार कर दिया। बताया जा रहा है कि इस 9 सदस्य टास्क फोर्स में मध्य प्रदेश सरकार के अधिकारी को शामिल किया गया है। झाला ने स्वयं को ट्रांसपोर्ट से बाहर किए जाने के मामले में कोई टिप्पणी नहीं की है।