ये आवाज गूंजेगी जरूर ..
गूंजने के लिए आवाज का होना जरुरी है लेकिन दायरों में बंधी हुई आवाज कैसे गूंजेगी? सन्नाटों में दबी हुई आवाज कैसे गूंजेगी? जवाब के इंतजार में यह सवाल पूछा जा सकता है। लेकिन जवाब मिलेगा इसकी कोई गारंटी नहीं है। तो क्या गूंज कोई जवाब है? तो मेरा कहना है कि नहीं। ये केवल अवसर है। बहुतों कोे आजमाया। कुछ को आजमाने के लिए तो कम से कम वोट भी दिए लेकिन गूंज के आजमाने के लिए न वोट देने हैं ना पैसे? बस goonj.co.in पर जाकर रजिस्टर कीजिए और देखिए यदि आपकी आवाज गूंजने लगे तो मान लीजिए कि ये प्लेटफॉर्म काम का है।
इससे सस्ता सौदा क्या होगा? सौदे से याद आया कि मैं आपकों बता दूं कि हम सौदागर नहीं है। हम संस्कृति के दायरे तोड़ने यहां नहीं आए हैं। हां सिस्टम से दो-दो हाथ जरुर करेंगे। हम मुझे क्या मतलब का दायरा जरूर तोड़ेंगे। क्योंकि मुझे क्या मतलब से ही सारी मतलब की बातें हवा हो गई और जो रह गया वह हर गलत बात को चुपचाप सह जाने की खामोशी है। युवा खून से घर, परिवार, समाज और देश हर किसी की उम्मीदें बंधी हुई हैं। लेकिन इन सरोकारों पर नौकरी और आजीविका की चिंता भारी है। इस चिंता को करते करते ही कुछ तो करना होगा। बस यही सोच है गूंज। जिस समय आवाज सुनने को कम मिलती है ऐसे में गूंजने की संभावना न के बराबर है। फिर भी हम केवल आवाज उठाना चाहते हैं। कुछ दूर साथ चलिए न जमें तो अपना रास्ता अलग करने के विकल्प हमेशा हैं।