21st November 2024

एक साथ 34 लोगों की सिर काटकर हुई हत्या में सारे आरोपी दोषमुक्त

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मामला सेनारी नरसंहार का, माओवादियों पर था हत्याकांड का आरोप

सुचेन्द्र मिश्रा

18 मार्च 1999 की वो रात। माओइस्ट कम्युनिस्ट सेंटर यानी एमसीसी से जुड़े 500-600 उग्रवादियों ने सेनारी को चारो ओर से घेर लिया था। इनके हाथ में धारदार हथियार थे। इन्होंने घरों में से लगभग चालीस पुरुषों को बाहर निकाला और एक के बाद एक की गर्दन काटते चले गए। दहशत ऐसी थी कि ये चालीस अपनी-अपनी गर्दन कटने के लिए लाइन में लगे थे और मारने वाले गर्दन काटने के बाद भी पेट भी चीर रहे थे। उस रात कुल जमा 34 लोगों की हत्याएं हुईं। सभी मरने वाले भूमिहार जाति के थे और सभी मारने वाले दलित और पिछड़ी जातियों के थे।

ये बिहार की उस जातिवादी राजनीति का चरम था जिसकी पैदाईश लालू यादव, रामविलास पासवान और नीतिश कुमार थे। उस समय राबड़ी देवी बिहार की मुख्यमंत्री थीं और अटलजी देश के प्रधानमंत्री। राबड़ी देवी की सरकार को इस हत्याकांड के बाद बर्खास्त कर दिया गया था।

इस मामले में पटना हाई कोर्ट ने सभी आरोपियों को दोषमुक्त कर दिया है। जबकि निचली अदालत ने इस मामले में 10 दोषियों को मौत की सजा सुनाई थी और तीन दोषियों को उम्र कैद और एक-एक लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया था। ये सभी हाईकोर्ट से बरी हो गए हैं। शर्तिया इस मामले से बिहार की राजनीति एक बाऱ् फिर से गर्माएगी।

वापस गांव लौट गए थे शहरों में रह रहे युवा

इस हत्याकांड के बाद वे भूमिहार युवा जो गांव छोड़कर अलग-अलग कारणों से शहर चले गए थे, वे वापस गांव लौट आए थे। इतना ही नहीं हत्याकांड के अगले हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार रहे पद्मनारायण सिंह अपने गांव सेनारी पहुंचे। अपने परिवार के 8 लोगों की फाड़ी हुई लाशें देखकर उनको दिल का दौरा पड़ा और उनकी मौत हो गई। इसके बाद इस पक्ष के लिए एक ही बात बची थी वो थी बदला। सेनारी में इस हत्याकांड में मारे गए लोगों की स्मृति में एक स्मारक बना है जिस पर इस घटना में मारे गए लोगों के नाम लिखें हैं।

तत्कालीन मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के शंकरबिगहा आने के बाद ही मारे गए लोगों का अंतिम संस्कार एक साथ हुआ था।

ये बदला था लक्ष्मणपुर बाथे हत्याकांड का

आप सेनारी के बारे में कोई राय कायम करें इसके पहले जरुरी है कि आप इसके दो साल पहले हुई लक्ष्मणपुर बाथे हत्याकांड के बारे में भी जान लें। ये हत्याकांड सर्द दिसंबर में हुआ था। इसके बारे में आरोप है कि इसे भूमिहारों की रणवीर सेना ने किया था। एक दिसंबर की रात को लगभग सौ हथियार बंद लोग तीन नाव से लक्ष्णपुर बाथे के पास शंकरबिगहा गांव में उतरे। ये सोन नदी का किनारा था। उतरते ही सबसे पहले इन्होंने नाव के मल्लाहों को मारा और उसके बाद गांव में पहुंचे। हथियारबंद लोगों को देखकर वहां भगदड़ मच गई।

60 लोगों को गोली मार दी गई। जिनमें 27 औरतें और 10 बच्चे थे। उनमें तीन साल का एक बच्चा था। मारी गई महिलाओं में से 10 औरतें गर्भवती थीं। तीन घंटे तक गोली चली। उस दिन यहां कई परिवारों के सारे लोग मार दिये गये थे। कहीं एक बूढ़ा बचा था, कहीं बच्चा। कहीं एक औरत। दो दिन तक लाशें गांव में रखकर धरना हुआ। मुख्यमंत्री राबड़ी देवी शंकरबिगहा गईं थी। उसके बाद ही इन लाशों का अंतिम संस्कार हुआ था।

सेनारी हत्याकांड का इसके अलावा कोई अन्य फोटो लगाने लायक नहीं है।

इसमें भी हाई कोर्ट से बरी हुए थे आरोपी

इस घटना में 46 लोगों को आरोपी बनाया गया था। जिनमें से 19 लोगों को निचली अदालत ने ही दोषमुक्त कर दिया था जबकि एक व्यक्ति सरकारी गवाह बन गया था। पटना की एक अदालत ने अप्रैल 2010 में 16 दोषियों को मौत की सजा सुनाई और 10 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। सजा सुनाते हुए जिला और सत्र न्यायधीश विजय प्रकाश मिश्रा ने कहा था कि ये घटना समाज के चरित्र पर धब्बा है। लेकिन 2013 में यह धब्बा धुल गया। इस साल सभी 26 अभियुक्तों को पटना की हाईकोर्ट ने बाइज्जत बरी कर दिया था। सेनारी हत्याकांड लक्ष्मणपुर बाथे का ही बदला था।

सेनारी में नहीं था विवाद

लक्ष्मणपुर बाथे के बदले के लिए सेनारी को चुना गया था। लेकिन खास बात ये है कि सेनारी उस समय तक बिहार की जातिवादी राजनीति बचा हुआ था । इसके चलते ही यहां रहने वाले भूमिहारों और दलितों व पिछड़ों ने हमलों से बचने की व्यक्तिगत स्तर पर कोई तैयारी नहीं की थी। क्योंकि यहां के निवासियों को लगता था कि जब उनके बीच कोई विवाद नहीं है तो उन्हें इस तैयारियों की आवश्यकता भी नहीं है। इसके चलते  सेनारी को चुना गया। आसपास के गांवों में एमसीसी सक्रिय थी, मगर इस गांव में नहीं। 300 घरों के गांव में 70 भूमिहार परिवार अपने दलित पड़ोसियों के साथ बड़ी शांति से रहते थे। इस हत्याकांड के बाद सेनारी में वैसा माहौल नहीं रहा।

You can follow the reporter of the story Journlist Suchendra on twitter @SucehndraMishra

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