गूंज देश का पहला स्टूडेंट्स का स्टूडेंट्स के लिए अखबार
इसके चलते आपके मन में यह उत्सुकता स्वाभाविक है कि इसमें आपके लिए ऐसा क्या होगा जो आपको लोकप्रिय समाचार पत्रों में नहीं मिलता है? और सामान्य स्टूडेंट जो जर्नलिज्म की पढ़ाई नहीं कर रहा है आखिर उसका गूंज से क्या सरोकार है? सबसे पहले आप स्टूडेंट्स न्यूज पेपर के बारे में जान लें। यूरोप और अमेरिका में ज्यादातर कॉलेज और यूनिवर्सिटी के अपने न्यूज पेपर्स हैं। इनमें से लगभग आधे तो दैनिक अखबार हैं जो कि केवल उन दिनों नहीं निकलते हैं जिस दिन कॉलेज या यूनिवर्सिटी की छुट्टी रहती है। ये अखबार केवल स्टूडेंट्स से संबंधित खबरें नहीं लाते हैं। बल्कि इनकी खबरें सामान्य अखबारों की तरह होती हैं, हां इनका फोकस जरूर स्टूडेंट्स पर होता है। इन अखबारों में प्रशिक्षित जर्नलिस्ट भी होते हैं लेकिन ज्यादातर काम स्टूडेंट्स ही इन जर्नलिस्ट के मार्गदर्शन में करते हैंं। एक सर्वे के मुताबिक अमेरिका में 73 प्रतिशत स्टूडेंट्स अपने संस्थान के न्यूज पेपर पढ़ते हैं, वहीं स्कूली छात्रों में ये दर 92 प्रतिशत की है। इतना ही नहीं इन संस्थानों के आसपास रहने वाले गैर स्टूडेंट्स भी इन समाचार पत्रों के नियमित पाठक हैं।
आखिर क्या जरुरत है कि स्टूडेंट्स का अखबार स्टूडेंट्स ही निकालें ?
इस सवाल का जवाब है कि सुबह से लेकर शाम तक हम मीडिया के संपर्क में होते हैं लेकिन हम मे से अधिकांश को कोई जानकारी नहीं है कि जो सूचनाएं और समाचार उन्हें इस मीडिया के जरिए मिल रहे हैं वे कितने सही, कितने प्रायोजित और कितना गलत हैं इसको जानने की क्षमता हम में से अधिकांश को नहीं है। इसका क ारण यह है कि हमे मीडिया लिटरेसी की जानकारी नहीं है जबकि यूरोप में इसे स्कूल से ही एक विषय के रूप में पढ़ाया जाता है। गूंज दरअसल एक मीडिया लिटरेसी प्रोग्राम है और मीडिया लिटरेसी ही मीडिया को मनमानी करने से रोक सकती है तथा उन्हें जिम्मेदार बना सकती है।
दूसरा इसका एक और कारण है कि स्टूडेंट्स को न केवल मीडिया की कार्यप्रणाली की जानना चाहिए ताकि जीवन में कभी किसी कारण से उन्हें कोई मुद्दा या सामाजिक सरोकार के लिए मीडिया से मदद लेना पड़ी तो वे बेहतर स्थिति में होंगे। नहीं तो प्रेस में समाचार भेजने के लिए कई बार ऐसे व्यक्ति को खोजना पड़ता है जो प्रेस नोट बनाना जानता हो। इसका तीसरा कारण यह है कि हो सकता है इसमें शौकिया तौर पर गूंज से जुड़ने वाले स्टूडेंट्स अपने लिए कॅरियर की नई राह भी खोल लें।
प्रोफेशनल मीडिया V/S गूंज
हमको यह स्वीकार करने में कोई झिझक नहीं है कि गूंज के पास लोकप्रिय समाचार पत्रों के छोटे से ब्यूरो कार्यालय के बराबर भी संसाधन नहीं है लेकिन हम जानते हैं कि हमारे पास पूरे देश में उन 7800 युवाओं का उत्साह और समर्पण हैं, जिन्होंने अपने छात्र जीवन में गूंज के साथ मीडिया लिटरेसी की शुरूआत की है। वे अपने 1.15 लाख उन साथियों की उम्मीदों को, जिन्होंने कि गूंज पढ़ने के लिए सब्सक्राईब किया है, को निराश नहीं होने देंगे।
हमारा सेट अप छोटा है और हमारा किसी से कॉंपीटिशन नहीं है इसलिए हमारे लिए अपने विज्ञपनादाताओं के हित अपने युवा साथियों के हितों से कभी बड़े नहीं होंगे। हम लोकप्रिय मीडिया के उन कॅरियर संबंधी विशेषांकों की तरह नहीं होंगे जिनमें एक तरफ एक संस्थान की प्रशंसा होती है और दूसरी तरह उनका विज्ञापन। गूंज एक ई-पेपर है इसके चलते इसकी लागत लोकप्रिय मीडिया से कम है। इसके चलते इसकी वित्तीय आवश्यकताएं भी कम है। जहां तक संभव होगा गूंज अपनी आवश्यकताओं की पूर्ती अपने युवा साथियों से मिलकर करने का प्रयास करेगा।
गूंज का फोकस निश्चित रुप से शिक्षा, कॅरियर और युवाओं के सामाजिक सरोकारों से होगा लेकिन इसमें आपकों सामान्य खबरें भी मिलेंगी लेकिन वे उस नजरिये के साथ होंगी जिस नजरिये से वे युवाओं के लिए उपयोगी हों। इस तरह से यह युवाओं की जरुरतों पर फोकस करता हुआ एक दैनिक समाचार पत्र होगा। जानकारी केवल भारत के शैक्षणिक संस्थानों तक ही सीमित नहीं रहेगी इसके माध्यम से आप यह भी जान पाएंगे कि दुनिया के शैक्षणिक संस्थानों में क्या जल रहा है और वो आपकों क्यों जानना जरुरी है।