YouTube पर भोजपुरी और भजन का जलवा

भजन और भोजपुरी गाने दो अलग-अलग ध्रुव पर बैठे हुए संगीत हैं खास बात यह है कि दोनों ही भारत में यूट्यूब पर बहुत पॉप्युलर है और उनके व्यूज सैंकड़ों मिलियन में हैं। इन दो विपरीत संगीत के ध्रुव की सफलता क्या कहती है जानिए जाने माने पत्रकार रवीश कुमार की कलम से..

स्वाति मिश्रा के भजन ‘राम आए हैं’ को प्रधानमंत्री ने ट्वीट किया। यह भजन जनवरी के महीने में काफ़ी बजा है। इसके वीडियो देखे और सुने गए हैं। कह सकते हैं कि जनवरी का सुपरहिट गाना यही था। स्वाति मिश्रा के भजन को कई लोगों ने अपने चैनलों पर कॉपी पेस्ट किया है मगर दो चैनल ऐसे लगे जो स्वाति के ही लगते हैं। इन पर 94M और 53M व्यूज़ है। कुल 147 M व्यूज़। इतने कम दिनों में यह संख्या बहुत ज़्यादा है।

यू ट्यूब पर भजनों को काफ़ी सुना जाता है। अच्छे भजन को पचास से लेकर सौ मिलियन व्यूज़ मिलते हैं। दस, बीस और तीस मिलियन तो आम बात है। भजन गायकी में कड़ी प्रतियोगिता है। ऐसा नहीं कि हर किसी को कामयाबी मिल जाती है।

पाँच साल पहले लखबीर सिंह लक्खा के हनुमान भजन को 65M व्यूज़ मिला है। अंकित बत्रा ने पाँच साल पहले अच्युतम केशवम अपलोड किया है। इसे 174 M व्यूज़ मिले हैं। सात साल पहले विपुल म्यूज़िक ने श्री राधे राधे बरसाने वाली राधे अपलोड किया है। इसे 700 M व्यूज मिले हैं।

यह एक रैंडम अध्ययन है। लोकप्रिय भजनों को देखें तो ज़्यादातर उच्चतम क्वालिटी के हैं। ऐसा नहीं कि किसी ने गा दिया और व्यूज़ मिल गए।

लेकिन इसी के साथ भोजपुरी गानों के व्यूज़ देखने लगा। पवन सिंह और खेसारी लाल के गानों को भी ज़बरदस्त व्यूज़ मिले हैं। खेसारी लाल का एक गाना है, ‘नथुनियाँ’। इसे 385 M व्यूज़ मिले हैं। शिवानी सिंह और पारुल यादव का गाना ‘सेंट गमकऊआ’ को 231 M व्यूज़ मिले हैं। खेसारी लाल का एक गाना है ‘सज के संवर के’ उसे 501M व्यूज़ मिले हैं।

पवन सिंह का एक गाना है हरी हरी ओढ़नी इसे 300M व्यूज मिले हैं। पवन सिंह का एक और गाना है राते दिया बुताके इसे 594 M व्यूज़ मिले हैं। पवन सिंह का गाना ‘कमरिया लालीपॉप लागे लु’ को 300M व्यूज मिले हैं। यह गाना अलग-अलग लिंक से पोस्ट हुआ है, उन सभी को जोड़ लें तो गिनती कुछ भी हो सकती है।

रीतेश पांडे का एक गाना है। ‘लवंडिया लंदन से लाएंगे’ इसे 600M व्यूज़ मिले हैं। उनका चार साल पहले का एक गाना है ‘हलो कौन’ इसे 971M व्यूज़ मिले हैं।

भजन और भोजपुरी के श्रोता बहुत अलग नहीं हो सकते। ये भी राजनीतिक समाज का हिस्सा होंगे ही। किसी के लिए डॉ अंबेडकर तो किसी के लिए गांधी तो किसी के लिए योगी और मोदी प्रेरणा होंगे। लोहिया से लेकर राहुल गांधी भी। क्या हम इस राजनीति समाज को जानते हैं? यह क्या खाता-पीता और देखता-सुनता है हमें पता है?

एक समाज को समझने के लिए इनका अध्ययन होना चाहिए। जो समाज भजन के मामले में इतना बारीक स्वाद रखता है, वह किस तरह के भोजपुरी गाने सुन रहा है। देखना चाहिए कि राजनीति से उसकी आकांक्षा क्या है, जीवन को भोगने के उसके प्रतीक क्या हैं और जीवन के बाद मुक्ति का मार्ग क्या है।

ऐसा तो हो नहीं सकता कि किसी गाने को 500M व्यूज़ मिला है, उनमें से कोई ऐसा भजन न सुनता हो। किसी को वोट न देता हो। भजन और भोजपुरी गायकों का राजनीतिक इस्तेमाल भी हुआ है। कई भोजपुरी गायक सांसद हैं। हिन्दी के लोकप्रिय गायकों को कोई पहचानता भी नहीं होगा। कम से कम भोजपुरी के गायकों जितना तो बिल्कुल नहीं। कुल मिलाकर यू ट्यूब की दुनिया में भजन और भोजपुरी गायकों की तूती बोलती है।

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