27th July 2024

वैश्विक भूगोल पर करवट लेते पीओके व बलूचिस्तान

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पीओके और बलूचिस्तान के हालात देखते हुए 2026 की गर्मियों में हो सकती है भारत -पाक के बीच सैन्य तनातनी !

वि.के. डांगे

उपरोक्त प्रश्न दिनोंदिन महत्व का हो रहा है। भारत की आंतरिक समस्याओं में बेरोजगारी, महंगाई अपराध जैसी समस्याएं तो है ही, उन पर धीरे-धीरे काबू भी हो रहा है। साथ में अयोध्या श्रीराम मंदिर व संविधान की कश्मीर विषयक धारा 370 ये समस्याएं हल हो चुकी है। इसी के साथ जुड़ी समस्याएं पीओके (पाक अधिकृत कश्मीर व गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र दोनों की मुक्ति की समस्याएं ऐसी हैं कि जिनकी ओर सारे देश का ध्यान 2024 लोक सभा चुनाव के बाद अवश्य जावेगा। अत: इस समस्या पर विचार करना आवश्यक है।

प्रख्यात युद्ध शासन विशारद कार्ल क्लाकुस बिट्झ का कथन है कि युद्ध कूटनीति का वर्धित (वृद्धिंगत) स्वरूप है। युद्ध पूर्व दोनों पक्ष कूटनीति द्वारा एक दूसरे को अपने वर्चस्व में लाना चाहते हैं, क्योंकि दोनों पक्ष जानते हैं कि युद्ध में विनाश दोनों ही पक्षों का होता है, पराजित पक्ष का नाश तो होता ही है, साथ में विजयी पक्ष का इतना नुकसान होता है कि कलाऊस विट्स कहता है कि विजेता सदा शांति चाहता है, परन्तु युद्ध के पश्चात। कश्मीर समस्या मात्र भारत-पाक के बीच की समस्या नहीं है, इसका संबंध कई अंतरराष्ट्रीय शक्तियों के साथ बनके आज की स्थिति बनी है। इसलिए इसे हल करने के पूर्व याने सैनिक कार्यवाही के पूर्व काफी कूटनीतिक गृह कार्य (होमवर्क) करना पड़ेगा, जैसा कि महाभारत युद्ध के पूर्व किया गया था।

सब कुछ बड़े स्तर पर भारतभर के राजा व उनकी बड़ी सेनाएं, उनके विविध शस्त्र और चतुरंग सेनाएं बड़े स्तर के कूटनीतिक व सैनिक दांव पेंच इन सबके कारण महाभारत नाम सार्थक हुआ। यही बात कश्मीर के विषय में भी सत्य होने जा रही है। 24 अप्रैल 2024 से मार्च 2025 तक कश्मीर विषयक राजकीय शतरंज की मुहरों की जमावट का होगा। भारत के पक्ष में क्वाड देश समूह – भारत-अमेरिका, जापान व ऑस्ट्रेलिया होंगे। संभावना यह है कि भारत-मिस्र जो अभी यूक्रेन से उलझ रहा है, पर्दे के पीछे से भारत का समर्थन करेगा, भारत को हथियार देता रहेगा व चीन को समझाता रहेगा कि यदि भारत पीओके व गिलगित, बाल्टिस्तान को कब्जे में लेता है तो वह इस भारत-पाक युद्ध में पाक की सक्रिय सहायता न करे, मात्र ऊपरी तौर पर पाक से सहानुभूति की बात करे।

संदर्भित युद्ध की स्थिति में भारत का समर्थन कोई भी अरब देश करेगा यह आशा व्यर्थ है, क्योंकि इस्लामिक देशों का संगठन, मामले की गुणवत्ता का विचार करने की बजाय मात्र पाकिस्तान जो एक इस्लामी देश है, उसका ही समर्थन करेगा। इस्लामिक आतंकवाद पीड़ित कुछ यूरोपीय देश जरूर भारत का समर्थन कर सकते हैं, परन्तु कितना यह कहना कठिन है। भारत के समर्थन में पीओके व गिलगित – बाल्टिस्तान की जनता है, क्योंकि वह जानती है कि भारत तेजी से विकास कर ऊंचा उठ रहा है, विशेष रूप से विकसित भारतीय कश्मीर की तुलना में पीओके कहीं नहीं है। यही तथ्य गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र के लिए भी सच है, वहां की जनता भी इस सत्य को जानती है।

इन तीनों क्षेत्रों की जनता पाक शासन के विरुद्ध व असंतुष्ट है, परन्तु प्रश्न यह है कि असंतोष की लहर कितनी ऊंची, प्रहारक व विस्तृत क्षेत्र में है। बलूच व पाक-अफगान सीमा क्षेत्रीय पख्तून सशक्त होकर पाक शासन के विरुद्ध लड़ सकते हैं, ऐसा कुछ काम पीओके, बाल्टीस्तान व गिलगित क्षेत्र की जनता कर सकती है, यह संदेहास्पद है। चाहे उसे शस्त्र आपूर्ति बाहर से भी हो, क्योंकि इन क्षेत्रों की जनता ने कभी सशस्त्र विद्रोह किया, ऐसा इतिहास में कहीं नहीं दिखता। जहां तक शेष पाक जनता की बात है, वह पाक शासन के कितनी ही विरुद्ध हो, वह भारत के विरुद्ध पाक शासन का ही साथ देगी, वहां के धार्मिक मुस्लिम संगठन के नेता व धार्मिक प्रतिनिधि पाक जनता को काफिरों के खिलाफ जिहाद – इस नारे से भड़काएंगे। इस स्थिति में इस्लामिक देश या तो पाक का साथ देंगे या तटस्थ रहेंगे, परन्तु भारत का समर्थन नहीं करेंगे।

इन देशों के बीच बसा इजराइल जरूर भारत का समर्थन करेगा, परन्तु इससे कूटनीतिक यौद्धिक स्थिति नहीं बदलेगी। यह तो कूटनीतिक क्षेत्र की बात हुई, यदि युद्ध हुआ तो वह कब, कहां व किस स्वरूप का होगा, यह भी तो सोचना होगा। पाक राजधानी इस्लामाबाद, पीओके की हद से पास ही है, वहां पाक सेना का जमाव पहले से ही होगा व पीओके में सेना भेजने में उसे सरलता होगी। ऐसी सरलता भारत को प्रयत्न से ही प्राप्त होगी, पीओके की भारतीय हद पर रसद सैनिक निवास, निगरानी चौकियों, संचार यातायात साधन इनका निर्माण है व नहीं तो तेजी से करना होगा, ताकि युद्ध स्थिति सेना को युद्ध में कोई कठिनाई न हो।

इस स्थिति में क्वाड देशों में मुख्य अमेरिका हमारी सहायता तकनीक तथा शस्त्रों से करेगा परन्तु वह न चाहेगा कि उसके सैनिक भारत-चीन सीमा पर भारत के समर्थन में युद्ध करें, क्योंकि कोरिया, वियतनाम व अफगानिस्तान में उसका अनुभव अच्छा नहीं रहा। फिर भी जो सहायता मिले भारत ने लेना चाहिए। ऋतुमात दृष्टि से युद्ध हेतु गर्मी का मौसम अनुकूल होगा, क्योंकि कश्मीर में इस समय सैनिक यातायात व हवाई सेना द्वारा हमला यह दोनों सरल होंगे। पीओके मुक्त होने में यदि तेजी से हमला तो चार दिन से अधिक समय नहीं लगेगा।

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शेष पाक-भारत सीमा पर पाक सेना को मात्र रोक रखने का काम भारतीय सेना को करना होगा। 1965 व 1971 के भारत-पाक युद्ध अक्टूबर 1965 व दिसंबर 1971 में लड़े गए, परन्तु आगामी भारत-पाक युद्ध गर्मियों में लड़ा जाएगा, इसकी गहन संभावना है। इस स्थिति में चीन भी इतना अज्ञान नहीं कि पीओके जैसे छोटे मामले को तूल देकर पूरे चीन-तिब्बत भारत सीमा पर भारत के विरुद्ध युद्ध करे। आखिर उसे भी युद्ध से हानि तो होगी ही। पीओके के विरुद्ध भारत-पाक युद्ध से पाक दुर्बल होकर बलूच स्वतंत्रता संग्राम को मदद मिलेगी। यह एक आगामी भारत-पाक युद्ध का उपसिद्धांत संग्राम को मदद मिलेगी। यह एक आगामी भारत-पाक युद्ध का उपसिद्धांत है। युद्ध की भविष्यवाणी अचूक करना तो संभव नहीं है, परन्तु नरेन्द्र मोदी शासन की सैनिक तैयारी देखते हुए 2026 की गर्मियों में इसकी संभावना है।

( लेखक सेवानिवृत्त प्राध्यापक भौतिकी एवं रूसी भाषा, इतिहास, रूसी कूटनीति व भारत-रूस संबंध के अध्येता हैं। यहां प्रस्तुत विचार लेखक के हैं।)

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