हिटलर से सीखें अपमानित राष्ट्र का गौरव पुनः कैसे प्राप्त किया जाता है
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राष्ट्र धारा में बहने से महान नही बनते विचारो के अनुपालन से बनते है। धारा में बहना राजनीति है धारा के इस पर या उस पार खड़े होना विचार है। जो लोग धारा में बह रहे है वो एक दिन स्वयं तो डूबते है लेकिन प्रवाह में साथ आए लोगो को भी डूबा देते है। विचार किनारे पर खड़े प्रवाह को बदलने का नाम है। हिटलर की प्रांसगिकता को याद कर रहे हैं सचिन सिह बघेल …
आज हिटलर का मृत्यु दिवस है और दस दिन पूर्व उसका जन्मदिवस भी था। यह वह व्यक्ति था जो अपने राष्ट्र को खड़ा करने के लिए इस हद तक गया कि स्वयं को स्वाहा होना पड़ा लेकिन देश को समाधान दे गया । हमारे सुभाष चन्द्र बोस को फ़्यूरर (नेताजी) इसी ने बनाया। बचपन मे जब कभी कोई कांग्रेसी संघ को नाजी कह देता तो गर्व का अनुभव होता था। लगता था एक दिन आएगा जब पुनः हम श्रृंगार करेंगे परिशोणित से । पुनः इतिहास रक्त से लिखा जाएगा बुद्ध अशोक से चण्ड अशोक होगा। हमारी सीमाए हिंदुकुश से लेकर तो ब्रम्ह देश म्यामार तक होंगी। माता अखंड होगी नरमुंडों की माला पहन माँ सिंहासन लगाकर विश्व पर राज करेंगीं लेकिन दुर्भाग्य हम तो युद्ध से उस बुद्ध पर आ गए, जो बामियान में खंडित हो गए ।
सत्ता के केंद्र पर पहुँच कर अशोक वाली गलतियां दोहरा दी । अंग्रेजो की गुलामी कर भी न सीख पाए । पूजित वही होता है जो राज करता है। उस देश कै जनमानस सुख भोगता है जिसके पास धन होता है । ज्ञान और विश्व गुरु की तूती आभासी है, ये आपके आस्था युक्त भाव से सत्ता में बने रहने का साधन मात्र है। दयाओ पर देश खड़े नही होते , खड्ग की धार से खड़े होते है। हिटलर ऐसा ही एक नाम है जिसने अपने देश के अपमान के लिए उसकी अस्मितता और साम्यवाद जैसी जहरीली धारा में डूबे हुए यहूदियों से मुक्ति के लिए 10 लाख शीशो की बली लेली। राष्ट्र ऐसी ही बलियो पर खड़े होते है अन्यथा सिर्फ हम रो सकते है अपने भाग्य पर नियति पर ।
आक्रमणकारी आते जाएंगे गांधी और उनके चाहने वाले सत्ता लोलुप नए नए स्वांग रचाकर पाकिस्तान बनाते जांएगे और और ये लालची नेता सिर्फ यह कहते जांएगे इतनी बड़ी आबादी को रखेंगे कहाँ । कभी कभी कुछ अच्छे के लिये बुरा करना पड़ता है। यदि ये इसके लिए तैयार नहीं तो आप निश्चित ही महामारी से मरने के लिए ही बने है। हिटलर उसके दुश्मन राष्ट्रों ने एक सनकी बताया है जबकि इसके उलट यह स्वास्थ्य क्षेत्र में आप जर्मनी के उस कालखंड में शोधों का एक बड़ा योगदान है।
विज्ञान में यांत्रिकी में तो आज भी जर्मनी का कोई जोड़ नही है ये देन किस की है? हिटलर की मैं प्रशंसा इसलिए नही कर रहा कि आप भी उसे पसंद करो लेकिन उससे कुछ तो सीखने की जरूरत है। यह सीखने की जरूरत है वार्सा की संधि से अपमानित राष्ट्र का गौरव पुनः कैसे प्राप्त किया जाता है। देश की सीमाएं कैसे बदली जाती है हमने भारत के लिए ऐसे ही व्यक्ति को चुनने का प्रयत्न किया था। लेकिन सन 2017 के बाद उसे विश्वनेता बनने का भूत चढ़ गया और इतना ही नही उस नेता को ये दम्भ होने लगा की वह पूरी दुनिया का मसीहा हो सकता है । इसके उलट वह सिर्फ पूंजीपतियों की हाथ की कठपुतली मात्र साबित हुआ। जिसका का काम उसके देश की जनता को मात्र नए नए रूप बदल उलझाए रखना है।
हिटलर जिसे लोग फ़्यूरर मानते थे , उससे अंतिम समय मे चूक हुई और विश्व का इतिहास बदलते बदलते रह गया। संभवतः वह अपनी योजना में सफल होता तो हम अपने देश मे पहला प्रधानमंत्री नेताजी सुभाष चंद्र बोस को देख रहे होते। आज का जीवन भी हमारा कुछ और होता लेकिन हम हजार साल की गुलामी के बोझ तले दबे कमजोर लोगो कमजोर आदर्श स्थापित कर गए । जिससे हमारे कमजोर भाविष्य का निर्माण हुआ। जिसका आज भी अनुगमन वैसे ही होता आ रहा है। “विरो भोग्य: वसुंधरा” जैसे वेद वाक्यो के में इन्हें भोग्य ही समझ आया वसुंधरा मतलब भूमि एक टुकड़ा मात्र नज़र आया ।
यह नकारत्मकता नही है। जब हम इस महामारी के दौर से गुजर रहे है देश सामाजिक सांस्कृतिक राजनैतिक नवपरिवर्तन की मांग कर रहा है तब हमे ये चिंतन की आवश्यकता है कि लंबा चलना जरूरी है या कम समय मे लक्ष्य तक पहुचना जरूरी है। यह अवश्यंभावी है कि अच्छे परिणाम के लिए अच्छे निर्णय लेने की आवश्यकता होती है।
हमने 2014 में इसके लिए प्रयत्न भी किया लेकिन हमें एक बुरा अनुभव और लेना बाकी था । खैर बड़े राष्ट्रों में ये होता है और जब आपको हिंदुकुश से सुदूर म्यामार तक विस्तार करना हो और पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था का केंद्र बनना हो, हर नागरिक को पर्याप्त धन देना हो , कल्पना कीजिये अंग्रेजो की तरह हमारे भी उपनिवेश हो तो ! भविष्य का लंदन कहाँ होगा विश्व नक्शे मे ! तो इन सब के लिए तैयारी कीजिये । परिवर्तन कीजिये ये तब ये सम्भव होगा। जब राष्ट्र का मतलब सिर्फ हिन्दू होगा । इस पृथ्वी पर जहाँ तक भूमि है वहाँ तक सिर्फ वेदों और सनातन धर्म को मानने वाली जाती रहेगी “कृण्वन्तो विश्वमार्यम” करना होगा। याद रहे लोग आपको भ्रमित करने का भी प्रयत्न करते रहते हैं। कहते है इस भारत रहने वाला हर नागरिक हिन्दू है ये गलत प्रचार है। कोई व्यक्ति जब तक हिन्दू नही होगा जबतक की वह हमारी संस्कृति को न मान ले तब तक वह हिन्दू नहीं है। इसलिए हे कृष्ण के वंशजों अपने आंखों पर बंधी गांधारी की पट्टी हटाओ औऱ सत्य को पहचानो ।आज हिटलर के मृत्यु दिवस पर उन्हें धन्यवाद। उन्होंने हमारी देश के महानायक सुभाष चंद्र बोस को नेताजी की उपाधि उनका भारत की आजादी के लिए आज़ाद हिन्द फौज के लिए मनोबल बढ़ाया । Hell Furiour हमारे लिए कौन होगा !!!!
( प्रस्तुत विचार लेखक के हैं )