चार बम धमाकों से सत्ता में आए थे पुतिन
मास्को के अपार्टमेंट में हुए थे विस्फोट
मामले को खोलने वाले केजीबी के जासूस की भी कराई लंदन में हत्या
गूंज विशेष
रूस के राष्ट्रपति ब्लादीमीर पुतिन हमेशा ही चर्चाओं में रहना पसंद करते हैं। वे कईं मायनों में रहस्यमयी इंसान भी हैं। खास बात ये है कि वे एक राजनीतिक कठपुतली के तौर पर रूस के सत्ता शीर्ष पर लाए गए थे लेकिन उन्होंने सबसे उन्हें सत्ता शीर्ष पर पहुंचाने वालों को ही ठीकाने लगाया। इस सूची में रूस के पूर्व राष्ट्रपति बोरिस येल्सिन से लेकर तो उद्योगपति बोरिस बेरोज़ोस्की शामिल हैं। यहां तक कि उन पर केजीबी में उनके साथी रहे जासूस अलेक्जेंडर लिविएंको की हत्या के भी आरोप हैं।
लेकिन इससे से भी बड़ा आरोप यह है कि उन्होंने 1998 में अपनी अलोकप्रियता को लोकप्रियता में बदलने के लिए मास्को के एक अपार्टमेंट में चार बम विस्फोट कराए थे। इसका आरोप चेचेन विद्रोहियों पर लगाया था और इस विस्फोट के चलते रूस का राजनीतिक वातावरण बदल गया था और पुतिन 53 प्रतिशत मतों से चुनाव जीत गए थे।
खास बात ये है कि ब्लादीमीर पुतिन केजीबी में कार्यरत थे और उन्हें रूस के तत्कालीन राष्ट्रपति बोरिस योल्सिन ने अपने उत्तराधिकारी के रूप में चुना था। उन्हें इसका सुझाव उद्योगपति बोरिस बेरोज़ोस्की ने दिया था। सोवियत संघ के विघटन के बाद येल्सिन रूस के राष्ट्रपति बने थे। इस दौरान केजीबी का नाम बदलकर एफएसबी रख दिया गया था और पुतिन को इसका मुखिया बना दिया गया था।
येल्सिन के कार्यकाल में भ्रष्टाचार चरम पर था। उनकी अप्रूवल रेटिंग दो प्रतिशत हो गई थी। ऐसे में पुतिन का चुनाव जीतना संभव नहीं था। बताया जाता है कि इसके लिए एफएसबी ने मास्को में अपार्टमेंट में बम विस्फोट करने की योजना बनाई और इसे अंजाम दिया। इस घटना में दो सौ से ज्यादा रूसी नागरिक मारे गए थे। इसका आरोप चेचेन विद्रोहियों पर लगाया।
इस मामले में एफएसबी उस समय उलझ गई जबकि एक अपार्टमेंट के बेसमेंट से एक जिंदा बम बरामद हुआ। पुलिस ने इस मामले में तीन लोगों को गिरफ्तार किया। तीनों एफएसबी के अधिकारी थे। इस पर एफएसबी ने सफाई दी कि यह उनकी मॉक डिल थी और वो बम नहीं चीनी का पावडर था। इस मामले में रूस की संसद ड्यूमा में दो प्रस्ताव पेश किए गए। एक जांच कमीशन भी बनाया गया। इस कमीशन के सदस्यों की भी रहस्यमयी परिस्थितियों में मौत हो गई लेकिन इन धमाकों की सच्चाई कभी बाहर नहीं आई।
लिविएंको की किताब ने खोला राज और उनका खेल खत्म हो गया
मास्को अपार्टमेंट्स में हुए बम धमाकों पर अलेक्जेंडर लिविएंको ने ब्रिटेन में शरण लेने के बाद एक पुस्तक लिखी। इसमें उनके साथ एक सहलेखक भी थे। इस पुस्तक का नाम था ब्लोइंग अप रशिया: टेरर फ़्रॉम विदिन। इस किताब में बताया गया था कि किस तरह एफएसबी में पुतिन को स्थापित करने के लिए मास्कों के अपार्टमेंट में बम धमाके कराए और एफएसबी अपने काम में सफल रही। इस किताब के बाद लिविएंको पुतिन के दुश्मन नंबर एक बन गए। यह किताब रूस में प्रतिबंधित है। लेकिन इसके पहले बही लिविएंको पुतिन की आंखों में चुभने लगे थे। इसके पीछे उनके द्वारा मीडिया में बोरिस बेरोजोस्की की हत्या की साजिश का खुलासा कर दिया था।
पुतिन के मददगार बेरोजोस्की को करना पड़ी आत्महत्या
बोरिस बेरोजोस्की रूस की सरकार में एक अधिकारी था और उसकी तत्कालीन राष्ट्रपति बोरिस येल्सिन के साथ नजदीकी थी। सोवियत रूस के विघटन के बाद रूस में निजीकरण की शुरुआत हुई। इसके बाद बेरोजोस्की उद्योगपति हो गया। वो कई आईल फील्ड के साथ ही रूस के टेलीविजन चैनल का मलिक हो गया। उसकी अचानक हुई इस तरक्की के चलते क्रेमलिन में उसके कईं दुश्मन बन गए।
पुतिन को राष्ट्रपति बनवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के चलते बेरोजोस्की को यह गलत फहमी थी कि पुतिन उनक इशारों पर काम करेंगे लेकिन जैसे ही बेरोजोस्की रूस की संसद के सदस्य बने पुतिन के साथ उनके संबंध बिगड़ गए। बाद में ब्लादीमीर पुतिन भी उनके दुश्मनों में शामिल हो गए।
इसके पहले बेरोजोस्की की हत्या की साजिश रची गई इसमें लिविएंको को भी शामिल किया गया था। लेकिन लिविएंको ने इसके राज मीडिया के सामने रख दिए। इसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।इसके बाद बेरोजोस्की को समझ में आ गया कि उनकी जान को खतरा है और वे भी ब्रिटेन भाग गए। 2013 में उन्होंने वहीं आत्महत्या कर ली।
कौन थे लिविएंको, जिन्हें मारने के लिए लंदन तक पीछा किया गया
लिविएंको का जन्म 1962 में हुआ था। स्कूल के बाद उन्होंने आर्मी ज्वाइन कर ली। 1988 में लिविएंको केजीबी में शामिल हो गए। केजीबी के भंग होने के बाद लिविएंको FSB में आ गए। चतुराई और मेहनत के दम पर उन्होंने अपनी पहचान बना ली थी। 1997 में लिविएंको को URPO में शामिल कर लिया गया। ये FSB का टॉप-सीक्रेट हिट स्क़्वाड था।
ब्रिटेन में शऱण लेने के बाद लिविएंको ने ब्रिटिश खुफिया एजेंसी एमआई-सिक्स के लिए काम करना शुरू किया। लिविएंको रूसी माफ़िया गैंग्स की पोल खोलने में एमआई-सिक्स की मदद कर रहे थे। ये गैंग पुतिन और उनके खास लोगों की शह से अपना कारोबार पूरे यूरोप में फैला रहे थे। इसके अलावा, लिविएंको ने पत्रकार और लेखक के तौर पर भी अपना काम जारी रखा था। वो लगातार पुतिन की निरंकुशता पर सवाल उठा रहे थे। इसका नतीजा ये हुआ कि उनके दुश्मनों की संख्या लगातार बढ़ती चली गई।
01 नवंबर 2006 की तारीख. इस दिन सेंट्रल लंदन के एक होटल में लिविएंको दो रूसी नागरिकों से मिले। इन दोनों का नाम आंद्रे लुगोवे और दमित्री कोवतुन था। लिविएंको ने पहले भी इनकी मदद ली थी। लेकिन उन्हें ये पता नहीं था कि ये लोग असल में डबल एजेंट की भूमिका में थे और पुतिन के लिए काम रहे थे।
लिविएंको ने उस दिन होटल में ग्रीन टी के तीन-चार घूंट लिए। घर पहुंचते-पहुंंचते उनकी हालत बिगड़ने लगी थी। लिविएंको को अस्पताल ले जाया गया. बहुत दिन के इलाज के बाद ये पता लग सका कि लिविएंको पोलोनियम-210 नाम का केमिकल दिया गया है।
केवल रूस में मिलता था ये जहर
ये बेहद रिएक्टिव केमिकल था. जानकारों के अनुसार, ये केमिकल सिर्फ़ और सिर्फ़ रूस में बनता था। इसका यूज़ न्युक्लियर ट्रिगर के लिए किया जाता था और, इसके इस्तेमाल के लिए राष्ट्रपति पुतिन की मंज़ूरी ज़रूरी थी। स्काटलैंड यार्ड ने मामले की जांच शुरु की उन्होंने पाया कि आंद्रे लुगोवे और दमित्री कोवतुन जहां भी गए थे वहां रेडियो एक्टिव रेडिएशन का स्तर बढ़ा हुआ पाया गया। इससे पुलिस ने निष्कर्ष निकाला कि ये दोनों ही पोलोनियम-210 अपने साथ लेकर आए थे।
आंद्रे लुगोवे को इस मिशन का ईनाम मिला। उसे बाद में रूस की संसद का सदस्य बन गया। वो आज भी सांसद है और, लिविएंको की हत्या में अपना हाथ होने से इनकार करता है। यूरोपियन ह्यूमन राइट्स कोर्ट (ECHR) ने इस केस में अपना फ़ैसला सुना दिया है। कोर्ट ने कहा कि अलेक्जेंडर लिविएंको की मौत के पीछे रूस का हाथ था।