एलएन मेडिकल कॉलेज में बिना काउंसलिंग के प्रवेश लेने वाले स्टूडेंट्स के एडमिशन को हाई कोर्ट ने किया रद्द

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कहा मेडिकल कॉलेजों में पिछले दरवाजे से प्रवेश बंद हो

नई दिल्ली

भोपाल के एलएन मेडिकल कॉलेज में बिना काउंसलिंग के प्रवेश लेने के मामले में सुनवाई करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि देश में लाखों छात्र योग्यता के आधार पर शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश पाने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं और अब समय आ गया है कि मेडिकल कॉलेजों सहित अन्य संस्थानों में पिछले दरवाजे से प्रवेश बंद हो जाएं।

उच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी उन पांच छात्रों की अपील को खारिज करते हुए की, जिन्हें चिकित्सा शिक्षा विभाग (डीएमई) द्वारा आयोजित केंद्रीकृत काउंसलिंग में शामिल हुए बगैर ही एलएन मेडिकल कॉलेज अस्पताल और अनुसंधान केंद्र, भोपाल द्वारा 2016 में प्रवेश दिया गया था।

कॉलेज ने एमसीआई के निर्देशों को रखा ताक पर

जबकि, उच्चतम न्यायालय के निर्देश के मुताबिक, देश के सभी सरकारी और निजी मेडिकल कॉलेजों में दाखिले नीट परीक्षा परिणाम के आधार पर केंद्रीकृत काउंसलिंग सिस्टम के जरिये ही होने हैं।

इसके चलते भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआई) ने अप्रैल 2017 में पांच छात्रों के प्रवेश को निरस्त करने संबंधी पत्र (लेटर ऑफ डिस्चार्ज) जारी किए और उसके बाद कई और संदेश भेजे गए लेकिन न तो छात्रों और न ही मेडिकल कॉलेज ने उन पर कोई ध्यान दिया। कॉलेज ने याचिकाकर्ताओं को अपना छात्र मानना जारी रखा और उन्हें कक्षाओं में आने देने, परीक्षाओं में शामिल होने की अनुमति दी और आगे बढ़ने दिया।

सिंगल बेंच में भी खारिज की थी छात्रों की याचिका

पांचों छात्रों ने एमसीआई द्वारा जारी किए गए डिस्चार्ज लेटर को रद्द करने के लिए याचिका दायर की, जिसमें कहा कि उन्हें मेडिकल कॉलेज में नियमित मेडिकल छात्रों के रूप में अपनी पढ़ाई जारी रखने की अनुमति दी जाए। यह याचिका एकल न्यायाधीश ने खारिज कर दी थी। छात्रों ने एकल न्यायाधीश के आदेश को चुनौती देते हुए अपील दायर की। अब जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस जसमीत सिंह की पीठ ने भी अपील को खारिज कर दिया है।

पीठ ने आदेश में कहा, ‘अब समय आ गया है कि मेडिकल कॉलेजों सहित शिक्षण संस्थानों में इस तरह के पिछले दरवाजे से प्रवेश बंद हो जाएं। देश भर में लाखों छात्र अपनी योग्यता के आधार पर शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश पाने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं। पिछले दरवाजे से प्रवेश देना ऐसे मेधावी छात्रों के लिए घोर अनुचित होगा।’

अपने हाल के लिए छात्र खुद जिम्मेदार

न्यायाधीशों की पीठ ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता इस हाल के लिए खुद जिम्मेदार हैं, जिन्होंने अपने जीवन के चार साल गंवा दिए। कोर्ट ने कहा, ‘अगर छात्रों ने डिस्चार्ज लेटर पर ध्यान दिया होता और अप्रैल 2017 में डिस्चार्ज निर्देशों के अनुसार काम किया होता तो वे अपने जीवन के चार साल बचा सकते थे। उन्होंने ऐसा नहीं किया और लापरवाही से काम किया। अपनी रिट याचिका में उनके पक्ष में कोई अंतरिम आदेश नहीं होने के बावजूद उन्होंने अपने जोखिम पर पाठ्यक्रम जारी रखा।’

एमसीआई के वकील टी. सिंहदेव ने कहा कि प्राधिकरण द्वारा अप्रैल 2017 की शुरुआत में डिस्चार्ज पत्र जारी करने के बावजूद किसी भी पक्ष ने चेतावनियों पर ध्यान नहीं दिया. वे बार-बार संदेश भेजने के बाद भी इसे अनदेखा करते रहे। उन्होंने यह भी बताया कि याचिकाकर्ताओं ने अदालत से कोई अंतरिम आदेश प्राप्त नहीं किया और बाद के वर्षों में प्रवेश लेना जारी रखा।

सिंहदेव ने कहा कि उन्होंने अपने जोखिम पर कॉलेज में परीक्षा दी। याचिकाकर्ता इस बात से अवगत थे कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तहत कॉलेज में उनका प्रवेश अनियमित और अवैध था।

खारिज किया उदारता का अनुरोध

याचिकाकर्ताओं के वकील ने अनुरोध किया कि उनके साथ कुछ उदारता बरती जाए और तर्क दिया कि मेडिकल कॉलेज के संबंध में डीएमई द्वारा आयोजित केंद्रीय परामर्श के माध्यम से प्रवेश देने वालों की तुलना में वे नीट परीक्षा में उच्च स्थान पर हैं।

कोर्ट ने कहा कि अगर मेडिकल कॉलेज ने खाली पदों के बारे में डीएमई को समय पर सूचित किया, तो निकाय ने आगे की काउंसलिंग आयोजित की होगी और 2016 में आयोजित नीट परीक्षा के आधार पर मेरिट के आधार पर नाम भेजे होंगे।अदालन ने कहा, ‘यह बहुत संभव है कि पांच याचिकाकर्ताओं की तुलना में भेजे गए अन्य उम्मीदवार अधिक मेधावी होंगे.’

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