खूनी जिहाद को फर्ज बताने वालों की किताबें अब तक कैसे चल रहीं थीं यूनिवर्सिटी में ?
बांग्लादेश 2010 और सउदी अरब 2015 में कर चुका है बंद, एएमयू ने अब किया
एएमयू के इस्लामिक स्टडीज़ विभाग ने इस्लामिक स्कॉलर अबुल आला मौदूदी और सैय्यद क़ुतुब को सिलेबस से हटा दिया है। इसे देर से उठाया गया सही कदम बताया जा रहा है। लेकिन इसके साथ ही ये सवाल भी उठ रहे हैं कि खूनी जिहाद को मुसलमानों का फर्ज बताने वाले इन इस्लामिक स्कॉलर्स की किताबें सेक्यूलर भारत में अब तक कैसे चल रही थीं।
बताया जा रहा है कि समाज सेविका मधु किश्वर समेत कई दक्षिणपंथी स्कॉलर्स ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खुला पत्र लिखकर मांग की थी कि इस्लामिक स्कॉलर मौलाना अबुल आला मौदूदी के लेखन और विचारों को इस्लामिक स्टडीज़ के पाठ्यक्रम से हटाया जाना चाहिए।
एएमयू सहित तीन सरकारी विश्वविद्यालयों में पढ़ा रहे इनको
दक्षिणपंथी स्कॉलर्स ने पत्र में कहा था कि मौदूदी इस्लामिक कट्टरवाद से जुड़े हुए हैं और केंद्रीय विश्वविद्यालयों में उन्हें और ऐसे अन्य स्कॉलर्स को नहीं पढ़ाया जाना चाहिए। इस पत्र के कुछ ही दिनों बाद एएमयू ने स्वतः फ़ैसला लेते हुए मौलाना अबुल आला मौदूदी और सैय्यद क़ुतुब को सिलेबस से हटा दिया। मौलाना मौदूदीकट्टर ख़ूनी जिहाद को ही मुसलमान का फ़र्ज़ बताते थे। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, जामिया मिल्लिया इस्लामिया और हमदर्द विश्वविद्यालय जैसे राज्य वित्त पोषित इस्लामी विश्वविद्यालयों के कुछ विभागों द्वारा बेशर्मी से जिहादी इस्लामिक पाठ्यक्रम पढ़ाया जा रहा था। ये इस्लामिक स्कॉलर्स कहते रहे कि हमें इस्लाम के लिए काम करना है और वो मेथड अडॉप्ट करना है जो हमारे रसूल ने अपनाया था।
बंद कर चुके हैं बांग्लादेश और सउदी अरब
साल २०१० में बांग्लादेश की सरकार ने आदेश दिया था कि देश की सभी मस्जिदों, मदरसों और पुस्तकालयों से मौलाना मौदूदी की लिखी किताबें हटा दी जाएं। बांग्लादेश की सरकार का उस समय कहना था कि मौलाना मौदूदी की किताबें चरमपंथी और आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा
देती हैं। बांग्लादेश की सरकार समर्थक संस्था इस्लामिक फ़ाउंडेशन के महानिदेशक शमीम मोहम्मद ने बीबीसी से बात करते हुए कहा था क मौदूदी का लेखन इस्लाम की शांतिपूर्ण विचारधारा के विरुद्ध है। इसलिए यह मस्जिदों में उनकी लिखी किताबें रखना सही नहीं है। हालांकि उस समय जमात-ए-इस्लामी ने सरकार के इस क़दम को इस्लाम विरोधी क़रार दिया था।
ब्रिटेन की जेल में भी मिली थीं इनकी किताबें
ब्रिटेन की जेलों में भी उनकी किताबें साल २०१५ में यान एचेसन ने ब्रिटेन की नौ जेलों की निरीक्षण किया था। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि कम से कम पाँच ऐसी किताबें जेलों में मौजूद थीं जिनको ब्रिटेन के जेल प्रशासन ने चरमपंथ को बढ़ावा देने वाला क़रार दिया था। यान एचेसन की कमेटी ने मार्च २०१६ में अपनी रिपोर्ट क़ानून एंव न्याय मंत्रालय को सौंपी और पाया कि उन्होंने जिन नौ जेलों का निरीक्षण किया था उनमें से नौ में यह किताबें पाईं गईं थीं।
उनकी रिपोर्ट के बाद सरकार ने जेलों से उन किताबों को हटाने का आदेश दिया था। जिन किताबों को ब्रिटेन के जेलों में पाया गया था और बाद में उनको वहां से हटाने का फ़ैसला किया गया था उनमें सैय्यद क़ुतुब की माइलस्टोन्स और मौलाना मौदूदी की टुवर्डस अंडरस्टैंडिंग इस्लाम भी शामिल थी। कहा जाता है कि इन किताबों ने अरब दुनिया में जिहादियों को प्रेरणा दी है। सऊदी अरब में भी साल २०१५ में इन किताबों पर पाबंदी लगा दी गई थी। मुस्लिम ब्रदरहुड के संस्थापक अल-बन्ना समेत मौदूदी और क़ुतुब की किताबों को आधुनिक राजनीतिक इस्लाम के विकास में केंद्रबिंदु माना जाता है।
लादेन भी था प्रभावित
इस्लामिक मामलों के विशेषज्ञों का मानना है कि न केवल मुस्लिम ब्रदरहूड बल्कि आतंकी ओसामा बिन लादेन और उसका संगठन भी मौदूदी की बातों से प्रभावित था। मौदूदी बंटवारे के समय भारत से पांकिस्तान गया था और वहां जाकर जमाएत ए इस्लामी की स्थापना की थी। वहीं सैयद कुतुब इजिप्ट का निवासी था और उसने अमेरिका में पढ़ाई की थी। 1950 में अमेरिका से वापस लौटकर कुतुब ने हिंसक जिहाद थ्योरी पर काम करना शुरू किया था। कुतुब 1966 में फांसी की सजा दी गई थी।