क्या ये आरक्षण विरोधी आंदोलन के नायक राजीव गोस्वामी को याद करने का सही समय है..?
आरक्षण 10 साल और बढ़ाने का प्रस्ताव सदन में पारित
19 सितंबर 1990
दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र एसएस चौहान ने आरक्षण के विरोध में आत्मदाह किया, एक अन्य छात्र राजीव गोस्वामी बुरी तरह झुलस गए।
24 सितंबर 1990
पटना में आरक्षण विरोधियों और पुलिस के बीच झड़प. पुलिस फायरिंग में चार छात्रों की मौत।
25 सितंबर 1991
दक्षिण दिल्ली में आरक्षण का विरोध कर रहे छात्रों पर पुलिस फायरिंग में दो की मौत।
20 सितंबर 1993
दिल्ली के क्राँति चौक पर राजीव गोस्वामी ने इसके ख़िलाफ़ एक बार फिर आत्मदाह का प्रयास किया।
23 सितंबर 1993
इलाहाबाद की इंजीनियरिंग की छात्रा मीनाक्षी ने आरक्षण व्यवस्था के विरोध में आत्महत्या की।
24 फरवरी 2004
आरक्षण विरोधी आंदोलन के अगुआ रहे राजीव गोस्वामी का लंबी बीमारी के बाद निधन।
…और
11 दिसंबर 2019
सन्सद ने आरक्षण 10 साल के लिए बढ़ाया..
एक बार फिर देश की संसद ने आरक्षण की व्यवस्था को 10 वर्ष के लिए और बढ़ा दिया लेकिन देश के सवर्ण युवाओं ने इसकी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या यह सही समय है कि आरक्षण विरोधी आंदोलन का चेहरा रहे राजीव गोस्वामी को याद किया जाए? 1990 के सितंबर में आरक्षण विरोधी जो आंदोलन शुरू हुआ था उसे देख कर ऐसा लगता था कि इस बार शायद जातिगत आरक्षण आर्थिक आधार पर आरक्षण में बदल जाए। लेकिन एमएस चौहान राजीव गोस्वामी और मीनाक्षी जान देकर भी ऐसा नहीं कर पाए संभवत इसके पीछे वोट की राजनीति जिम्मेदार थी लेकिन यह देश इन तीनों को ऐसे युवाओं के रूप में याद रखेगा जोकि अधिकार के लिए खड़े हुए थे संभवतः यह अपने अधिकार के लिए खड़े होने वाले अंतिम युवा थे।
जहां चौहान और मीनाक्षी की मौत उसी समय हो गई वहीं राजीव गोस्वामी 10 साल तक आत्मदाह का दंश झेलने के बाद 24 फरवरी 2014 को इस दुनिया से विदा हो गए। बताया जाता है कि उनकी बेटी सिमरन 20 साल की है और उनका बेटा 16 बरस का। लेकिन इन दोनों के पास अपने पिता का वह चित्र अवश्य होगा जोकि 1990 के दशक के आरक्षण विरोधी आंदोलन का प्रतीक बन गया था। वह चित्र था जलते हुए राजीव गोस्वामी का।
सोशल मीडिया पर आरक्षण विरोध के इक्का दुक्का प्रयास अवश्य होते रहे हैं लेकिन इन्हें आज के युवाओं का कोई समर्थन मिलता नहीं दिखता। हाल यह है कि आरक्षण 10 वर्ष के लिए बढ़ गया लेकिन इसे लेकर भी कहीं कोई बेचैनी या विरोध नहीं है। ऐसा लगता है जैसे आज की पीढ़ी ने व्हाट्सएप, फेसबुक, टि्वटर में ऐसा बहुत कुछ ढूंढ लिया है जो कि उन्हें आरक्षण जैसी चीज भी विचलित नहीं करती। पिछले दो-तीन दिनों से नागरिकता संशोधन बिल अलग-अलग तरीकों से ट्रेंड कर रहा है और से ट्रेन करने वाले ज्यादातर सवर्ण हैं लेकिन सोशल मीडिया पर आरक्षण विरोध का कहीं कोई नामोनिशान नहीं है।