लड़की नंबर 166 : गुमशुदा लड़की का ऐसा मामला जो बताता है कि पुलिस पत्रकार और तकनीक मिलकर क्या कर सकते हैं
7 साल की उम्र में गुमशुदा हुई लड़की 16 साल की उम्र में अपने परिवार से मिली
मुंबई . गूंज स्पेशल
9 साल पहले गुमसुदा हुई लड़की यदि घर के 500 मीटर के दायरे में मिल जाए तो इसे क्या कहेंगे? देखने में मामला थोड़ी सी लापरवाही का लगता है लेकिन मुंबई का यह मामला ऐसा नहीं है। मुंबई के अंधेरी इलाके के म्युनिसिपल स्कूल के बाहर से 7 साल की एक लड़की 2013 में गायब हुई थी। 2022 में जाकर यह लड़की 16 वर्ष की उम्र में अपने माता-पिता से मिल पाई है। खास बात यह है कि यह लड़की अपने घर से 500 मीटर दूर ही मिली है। एक पुलिसकर्मी की इच्छाशक्ति और एक पत्रकार की जिम्मेदारी भावना के साथ-सथ एक काम वाली बाई की डिजिटल तकनीक उपयोग करने के कौशल ने इस लड़की को अपने घर वालों से मिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
यह खबर अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने प्रकाशित की है क्योंकि लड़की माइनर है इसलिए कुछ की पहचान छुपाई गई है इसी के चलते उसके परिवार के सदस्यों के नाम भी नहीं लिखे गए हैं।
ऐसे दिया लड़की नंबर 166 का नाम
गुमशुदगी का यह मामला अंधेरे के डीएन नगर पुलिस स्टेशन में दर्ज किया गया था। इस पुलिस थाने में पदस्थ 2008 से 2015 तक पदस्थ रहे असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर राजेंद्र धोण्डु भोंसले ने 166 गुमशुदा लड़कियों के मामले देखे जिनमें से 165 मामले उन्होंने अपनी टीम के साथ सुलझा लिए थे। 2015 में भोंसले सेवानिवृत्त हो गए लेकिन इसकी टीस उनके मन में बनी रही। उनकी सूची में इस लड़की के केस का नंबर 166 था। इस तरह से यह केस लड़की नंबर 166 बन गया।
सेवानिवृत्त हो जाने के बाद भी भोंसले इस केस को सुलझाने के लिए लगे रहे और समय-समय पर डीएन नगर पुलिस स्टेशन आते रहे। उनके साथी बताते हैं कि एक बार तो इस केस को याद करके उनकी आंखों में आंसू आ जा गए थे। इस मामले के सुलझने पर सबसे ज्यादा खुश भोंसले ही है। इस मामले में 50 वर्षीय डिसूजा और उसकी 37 वर्षीय पत्नी सोनी को आरोपी बनाया गया है। डिसूजा को पुलिस ने पकड़ लिया है लेकिन सोनी अब तक पुलिस की गिरफ्त से बाहर है।
यह कहानी है लड़की नंबर 166 की
7 साल की यह लड़की अपने भाई के साथ अंधेरी वेस्ट के म्युनिसिपल स्कूल जाया करती थी। एक दिन स्कूल के बाहर उसे डिसूजा ने खड़ा देखा। इस दंपत्ति का कोई बच्चा नहीं था इसके चलते उन्होंने इसे अगवा कर लिया। उन्हें पता था कि लड़की इसी क्षेत्र की है इसके चलते उसकी पहचान हो सकती है। इसको ध्यान में रखते हुए उन्होंने लड़की को पढ़ाई के लिए कर्नाटक में रायचूर के हॉस्टल में भेज दिया था।
बाद में दंपत्ति का अपना बच्चा हो गया और उनके लिए दो बच्चों का खर्च उठाना मुश्किल होने लगा। तब उन्होंने लड़की को बेंगलुरु से वापस मुंबई बुला लिया। उसे किसी से भी बात करने की छूट नहीं थी। उन्हें लग रहा था कि इतने साल में बच्चे की शक्ल में इतने बदलाव हो जाते हैं कि कोई भी उसे नहीं पहचानेगा। बाद में उन्होंने उसे आया के रूप में काम में लगा दिया। डिसूजा दंपत्ति उसे डरा धमका कर रखते थे और उसके साथ आए दिन मारपीट भी होती थी।
लड़की को अपने साथ हुई घटना की कुछ कुछ याद थी। जिस परिवार में वह बच्चे को संभालने जाती थ, वहां घर का काम करने वाली नौकरानी से उसने बात की। नौकरानी ने इस लड़की की जानकारी के आधार पर गूगल पर मामला सर्च किया। लड़की के गुमशुदा होने पर उसके परिवार ने उसके पोस्टर लगाए थे और साथ ही पूरे मोहल्ले ने लड़की को खोजने की कोशिश भी की थी। उ
सी समय इंडियन एक्सप्रेस के एक पत्रकार ने भी इस पोस्टर का फोटो लगाकर गुमशुदगी की खबर की थी। खास बात यह है कि लो प्रोफाइल मामला होने के बाद भी अखबार ने यह खबर 8 कॉलम में लगाई थी। इसके चलते नौकरानी को google पर इस मामले से संबंधित कुछ जानकारी मिली और साथ ही वह पोस्टर भी मिल गया जो उस समय लड़की के गुमशुदा होते समय उसके परिवार ने लगाया था।
कुछ तस्वीरें देखने के बाद लड़की को भी दिया क्षेत्र पहचानने आ गया। गुमशुदगी के पोस्टर पर पांच लोगों के फोन नंबर गली हो गई थे। इनमें से चार नंबरों से महिला का संपर्क नहीं हो सका। लेकिन पांचवा नंबर जो कि लड़की के पड़ोसी रफीक का था। उस पर बात हुई लेकिन रफीक को कई बार इस संबंध में फर्जी फोन आ चुके थे। इसके चलते उन्होंने वीडियो कॉल करने की बात कही। फिर वीडियो कॉल का स्क्रीनशॉट लेकर उन्होंने लड़की के घरवालों को दिखाया। लड़की के घर वालों ने उसे पहचान कर थाने पर सूचना दी। और इस तरह से लड़की नंबर 166 की बरामदगी हुई।
इंसानियत कभी रिटायर नहीं होती
लड़की की बरामदगी हो जाने के बाद पुलिस ने इसकी जानकारी राजेंद्र भोंसले को दी भोंसले को विश्वास नहीं हुआ तो उन्होंने उनके साथ इस केस पर काम कर चुके सीनियर इंस्पेक्टर बीडी भोइते से इसकी पुष्टि की। इंडियन एक्सप्रेस ने इस पर खबर की थी कि किस तरह से भोसले अपनी सेवानिवृत्ति के बाद भी गुमशुदा लड़की को खोजते रहे। भोसले कहते हैं कि आप पुलिस से रिटायर हो सकते हैं लेकिन इंसानियत से नहीं।