भारत में कोरोना से बड़ी महामारी है आत्महत्या
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नई दिल्ली.
भारत में अभी दो बातों की बहुत चर्चा है। एक सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या और कोरोना पॉजीटिव की बढ़ती संख्या। इसके साथ ही अभी इसमें कंगना रनाउत की भी एंट्री हुई है। सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या के कवरेज को लेकर मीडिया निशाने पर भी है। जबकि यह भा्रत में प्रतिवर्ष होने वाली पौने दो लाख आत्महत्याओं में से एक है। इसका मतलब ये नहीं है कि इस पर चर्चा नहीं होना चाहिए लेकिन मूल रूप से चर्चा हमारे देश में बढ़ रही आत्महत्या की प्रवृत्ति पर होना चाहिए। विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस से बेहतर दिन इसके लिए नहीं हो सकता है।
कोरोना भारत में 2020 की शुरुआत में आया है और इससे अब तक हमारे यहां लगभग 75 हजार मौत हो चुकी हैं। वहीं इसकी तुलना में 2019 में भारत में कुल 1.39 लाख लोगों ने आत्महत्या की थी। इस तरह से देखा जाए तो कोरोना के पहले भी हमारे यहां आत्महत्या एक महामारी के रूप में मौजूद थी। इसमें भी खास बात यह है कि मरने वालों में 67 प्रतिशत 18 से वर्ष की आयु के थे। ये वो आयु वर्ग है जिसमें किसी की मौत को पूरा परिवार भुगतता है।
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हर चार मिनट में एक आत्महत्या
यदि 2019 के नेशनल क्राइम ब्यूरो के आंकड़ों का विश्लेषण करें तो चौकाने वाला तथ्य सामने आता है। हमारे देश में 2019 में प्रत्येक चार मिनट में एक व्यक्ति ने आत्महत्या की है। लेकिन चौकाने वाली बात ये है कि इसे अब तक समस्या नहीं माना गया है। आंकड़ों को और गहराई से देखेंगे तो पता चलेगा कि आत्महत्या करने वालों में ज्यादा संख्या लिखे पढृे लोगों की है। इस तरह से शिक्षित लोगों में आत्महत्या की बढ़ती प्रवृत्ति हमारी शिक्षा पद्धति पर भी सवाल खड़े कर रही है। इसके जवाब उसे भी खोजने चाहिए।
35 प्रतिशत व्यापारी
देश में जब भी आत्महत्याओं की चर्चा होती है तो सबसे पहले किसानों की आत्महत्या पर बात होती है। लेकिन एनसीबी के आंकड़े बताते हैंं कि आत्महत्या करने वालों में 35 प्रतिशत वे लोग हैं जो कि खुद का व्यापार करते हैं। इस तरह से आत्महत्या करने वालों में बड़ा वर्ग व्यापारियों का है। इसके अलावा इनमें 17 प्रतिशत लोगों ने मानसिक बीमारी झेलने की बजाय मौत का रास्ता चुनना बेहतर समझा। आंकड़ों से यह बात सामने आती है कि कक्षा 12वी तक पढ़ाई करने वाले लोग ज्यादा आत्महत्या कर रहे हैं। युवाओं में आत्महत्या की दर वर्ष 2018 के मुकाबले चार प्रतिशत बढ़ गई है।आत्महत्या करने वालों में 15.4 प्रतिशत गृहिणियों के अलावा 9.1 प्रतिशत नौकरीपेशा लोग थे। भारत में पारिवारिक कलह आत्महत्या की प्रमुख वजहों में शामिल है. लेकिन नशीली दवाओं और शराब के नशे की लत की वजह से भी ऐसे मामलों में तेजी आई है।
शहरी क्षेत्र में ज्यादा मामले
भारत के बड़े शहरों में शहरीकरण के अनुपात में आत्महत्या के मामले बढ़ रहे हैं। इस तरह से यह समस्या चेन्नई, बंगलुरू, हैदराबाद, मुंबई, दिल्ली और कोलकाता में तेजी से बढ़ रही है। दस लाख से अधिक जनसंख्या वाले शहरों में आत्महत्या की दर के मामले में केरल का कोल्लम पहले स्थान पर है तथा पं. बंगाल का आसनसोल दूसरे स्थान पर है। कोल्लम में प्रति दस लाख लोगों पर आत्महत्या की दर 43.1 प्रति लाख है तो आसनसोल में यह 37.8 है। हालांकि राहत की बात यह है कि भारत ज्यादा आत्महत्या करने वाले देशों की सूची में पहले 20 स्थान से बाहर हो गया है लेकिन अब यह 21वें स्थान पर है।
और बुरा हो सकता है 2020
माना जा रहा है कि इस मामले में साल 2020 का हाल 2019 की तुलना में और भी बुरा हो सकता है। 2019 के दौरान दैनिक मजदूरी करने वाले 32,500 लोगों ने भी आत्महत्या कर की थी जब कोरोना की वजह से बड़े पैमाने पर लोगों की नौकरियां नहीं गई थीं। ऐसे में 2020 के बारे में अनुमान लगाए जा सकते हैं। 2019 में देश में आत्महत्या करने वालों में से 74,629 यानी 53.6 प्रतिशत लोगों ने गले में फंदा डाल कर अपनी जान दी थी। यह साल इस मामले में चुनौतिपूर्ण रहेगा और कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि देश में कोरोना से ज्यादा मामले आत्महत्या के हों।
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पाकिस्तान बेहतर स्थिति में
आत्महत्या के मामलों में हमारे सारे पड़ोसी देश हमसे बेहतर स्थिति में हैं लेकिन इस मामले में पाकिस्तान की स्थिति भारत से बहुत अच्छी है। आत्महत्या के मामले में पाकिस्तान दुनिया में 169वें स्थान पर है जबकि भारत 21वें नंबर पर है। इसी तरह वर्ष 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक आत्महत्या की दर में श्रीलंका 29वें, भूटान 57वें, नेपाल 81वें, म्यांमार 94वें, चीन 69वें, बांग्लादेश 120वें स्थान पर हैं। यानी कि पड़ोसी देशों में आत्महत्या भारत जैसी समस्या नहीं है।
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